मैं रत्नाकर
सोमवार, अप्रैल 02, 2012
अनजाने शायर के लिये
दोस्तों हाल ही में इक बस पर लिखा शेर पढ़ा जो बेहद अच्छा लगा। पता नहीं उसका लेखक कौन है लेकिन जो भी है उसे मेरा सलाम, आप भी देखिये क्या खूब लिखा है
शाम के साए बालिश्तों से नापे हैं
चाँद, कितनी देर लगा दी आने में
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