शुक्रवार, नवंबर 23, 2012

खुद पे ही मर जाएं


मेरी एक ताज़ा रचना सादर पेश है 


कुछ यूं जुनूं की हद से गुज़र जाएं
देखें आइना ओ, खुद पे ही मर जाएं


नाम तो उस ख़ास का ना ले सकेंगे लब
तो लें आइना ओ, तेरे रूबरू धर आयें 

मुद्दतों में मिला सुराग इक खुशी का 
कैसे छोड़ें उसे ओ, साकी के दर पे जाएँ
ज़हर ही का नाम अब हो गया दवा 
नासेह जाएँ अब ओ, यार दर पे आयें 

पा ना सकेगा ऐसे रूहानी इश्क कोई 
नाम लें वो उसका ओ, फिर मर के आयें 

बुधवार, नवंबर 07, 2012


मैंने एक कल्पना की है, कृपया देखें 

"जी, नमस्ते, मैं नितिन बोल रहा हूँ "
"कौन नितिन?"
" आपकी पार्टी का अध्यक्ष"
"अध्यक्ष! अच्छा वो पूर्ति वाले? यार तुम गड़बड़ आदमी हो। घपले किये वो तो चलो ठीक था। अब हमारे आदर्शों के लिए उल जुलूल बोल रहे हो "
"जी, कौन आदर्श? वो आदर्श हाउसिंग सोसाइटी वाले?"
" वो नहीं, फिलहाल तो हम उनकी बात कर रहे हैं, क्या नाम है उनका,,,हाँ वो देवानंद। क्या बोल दिया तुमने? उनकी तुलना दाउद से कर डाली"
" बिलकुल नहीं। मैंने तो किसी विवेकानंद के लिए बोला था, देवानंद के लिए कैसे बोलूँगा वो तो मेरे पसंदीदा हीरो हैं"
" हां वो ही जो भी आनंद है, क्या बोल दिया तुमने?"
"मैंने तो कहा था कि , छोडो भी आप, जो बोला था वो छपा है अपने सचिव से कहना कल आप को पढ़ कर सुना देगा। मैं तो ये कह रहा था कि ............"
" अरे बात मत बदलो। और अगर तुम को तुलना करनी भी थी  तो किसी और से करते। तुलना उस दाउद से कर डाली जो विदेश में बैठा है। तुलना करने के लिए कोई स्वदेशी भाई नहीं मिला क्या? तुम जानते नहीं हो क्या कि  स्वदेशी के प्रति हमारा कितना आग्रह है, प्रेम है  ............?"
" स्वदेशी कौन? आप ही बता दें। मुझे तो कोई भी इतने बड़े क़द का नहीं लगता जिस से दाउद की तुलना करता ............"
" बको मत!अरे! अपना गवली है, छोटा राजन है, मुदलियार था, इन से तुलना कर देते। बल्कि हाजी मस्तान से तुलना करते तो स्वदेशी की भावना का संरक्षण तो होता ही, साथ ही यह सन्देश भी जाता कि हमारी पार्टी अल्पसंख्यकों को बराबर का सम्मान प्रदान करती है" 
कुछ देर चुप्पी फिर " अच्छा ये बताओ ये क्या नाम है  ............हां वो आनंद का आईडिया तुम्हें किसने दिया था?"
" वो आयोजन से एक रात पहले मैं शिकागो ब्यूटी की साईट देख रहा था, उस पर गलती से विवेकानंद जैसे कुछ फोटो भी पड़े हुए थे, साईट देर तक देखता रहा तो नींद ठीक से नहीं हुई थी, भाषण देने खड़ा हुआ तो खुमारी में विवेकानंद ही याद आ गया, वरना ऐसी गलती नहीं होती"
"गलती नहीं होती, मतलब? "
"मैंने सोचा था राम पर कुछ बोलूँगा ............"
"राम पर! अरे यार तुम बेवकूफ हो क्या, राम अब outdated हो चुका है, उससे तो अच्छा था कि तुम कृष्ण पर कुछ बोलते ............ कम से कम हमारे यहाँ उसका नाम तो अभी भी चलता ही है"
" अजी छोडिये! हमारे यहाँ तो "कृष्ण" भी  outdated है, बेचारा यात्रायें करते हुए थक गया है, अब तो 'मुरली' के बजने की भी कम ही उम्मीद नज़र आती है। सब कल की बातें हैं हम किसी भी बात पर "अटल" कहाँ रहे हैं? अब तो बस इस बात का संतोष है कि  पार्टी ने संघर्ष कर स्वतंत्र भारत यानी "स्वराज" की प्राप्ती कर ली, वरना लोग तो हमें किसी "महाजन" की नज़र से ही देखते थे, अब तो हम स्वराज प्राप्ति से ही संतोष कर लेंगे " 
" समझदार हो, काफी आगे जाओगे............"
" आगे ही जा रहा था, पता नहीं ये विवेकानंद कहाँ से आ गया............अब आप ही कुछ करो"
"............हूँ............ये विवेकानंद करता क्या था? कुछ धंधा............मेरा मतलब बिज़नस?"
" धंधा करता तो मेरी जगह वो हमारी पार्टी का अध्यक्ष नहीं होता? शायद अच्छा स्टेज आर्टिस्ट था। मिमिक्री वगैरह करता रहा होगा। कहते हैं शिकागो जाकर भी उसने मंच लूट लिया था"
" दाउद भी बाहर जाकर वाहवाही ही लूट रहा है, फिर तो यार तुम्हारी तुलना गलत नहीं थी............दोनों ने ही देश के बाहर ............"
" आपने समझ लिया लेकिन अपने ही इसे नहीं समझ रहे, ये देवरमलानी सरीखे लोग तो मेरे जान के दुश्मन बन गए हैं।" 
" छोडो, हम तुमसे खुश हैं, आराम से सो जाओ, कल हम ट्वीट कर देंगे, तुम्हारे पक्ष में"
"लेकिन ये ट्वीट भी विदेशी है और हम स्वदेशी, कोई कुछ बोलेगा ............तो?"
" अरे मूर्ख! तब हम कह देंगे कि स्वदेशी भी outdated हो चूका है"
" धन्य हैं आप, आप की जय हो"
" धन्य मैं नहीं "हम" हैं। अरे जब राम को कोने में खड़ा कर दिया तो इस स्वदेशी की भला क्या बिसात है? आराम से सो जाओ ............जय राम जी  की............उफ़! ये आदत न जाने कब जायेगी, मेरा मतलब गुड नाईट।
" जी गुड नाईट, जय राम जी की तो  outdated हो चूका है ............