सोमवार, अक्तूबर 07, 2013

फुरसत मिली तो भूल गया

कई दिन बाद दिल ने कुछ कहा तो कुछ लिख दिया 



फुरसत मिली तो भूल गया मैं किसी को ऐसे 
मसरूफियत में रहा हो उसी का ख़याल जैसे 

गमे-रोज़गार भर में शिद्दत से ढूँढा जिसको 
बहार का एक झोंका उडा  ले गया उसे जैसे 

शब् भर करा था सोचा कि  वस्ल का हो दिन 
नसीमे-सुबह ही दिखी कोई रकीब हो जैसे 

मेरी खामोशी को वो गुमां समझ बैठे कुछ यूं 
मेरे अलफ़ाज़ भी जो हो फ़क़त बे-मायने जैसे 

मैं तो वोही ही हूँ, जो मिला था तुझको पहले 
हालात बदल गए कुछ किसी बेवफा के जैसे