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लहरें भी थीं शरीर, नाखुदा भी सो गया
बेक़सूर इक सफीना यूं ही गर्क हो गया
चाहत तो थी किसी की हरेक पल मगर
इज़हार के वक़्त मैं तसव्वुर में खो गया
फिर पूजा सभी ने देवता बना के उसको
मेरे दर्द पे जो था किसी बुत सा हो गया
कुछ ऐसी आरजू से मुझे आइने ने देखा
कि तेरी आरजू पे मेरा दिल ही रो गया
कागज़-ओ-कलम दोनों दगाबाज़ निकले
जो नाला कहा उनसे वो ही आम हो गया
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रत्नाकर त्रिपाठी
लहरें भी थीं शरीर, नाखुदा भी सो गया
बेक़सूर इक सफीना यूं ही गर्क हो गया
चाहत तो थी किसी की हरेक पल मगर
इज़हार के वक़्त मैं तसव्वुर में खो गया
फिर पूजा सभी ने देवता बना के उसको
मेरे दर्द पे जो था किसी बुत सा हो गया
कुछ ऐसी आरजू से मुझे आइने ने देखा
कि तेरी आरजू पे मेरा दिल ही रो गया
कागज़-ओ-कलम दोनों दगाबाज़ निकले
जो नाला कहा उनसे वो ही आम हो गया
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रत्नाकर त्रिपाठी
बेक़सूर इक सफीना यूं ही गर्क हो गया
चाहत तो थी किसी की हरेक पल मगर
इज़हार के वक़्त मैं तसव्वुर में खो गया
फिर पूजा सभी ने देवता बना के उसको
मेरे दर्द पे जो था किसी बुत सा हो गया
कुछ ऐसी आरजू से मुझे आइने ने देखा
कि तेरी आरजू पे मेरा दिल ही रो गया
कागज़-ओ-कलम दोनों दगाबाज़ निकले
जो नाला कहा उनसे वो ही आम हो गया
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रत्नाकर त्रिपाठी