मालिक ये कुफ्र मुझसे कैसा हो गया
नाम ले के तेरा किसी और में खो गया
झुका था तो सजदे में मैं तेरे ही फ़क़त
अंदाज़ जाने क्यूं आशिकाना हो गया
वुजू तक ही तो था आब और मेरा साथ
एक याद का बादल मुझे सरापा धो गया
नासेह को तो डूब के ही सुन रहा था मैं
कोई दामन याद आया और मैं सो गया
बाम पे तो मैं बस तलाश रहा था चाँद
दिखा कोई और वहम ईद का हो गया
यूं बेशुमार दर्द मेरी दास्ताँ में छिपा था
जब बुत को सुनाया तो वो भी रो गया
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अर्थ
कुफ्र ------ नाशुक्री, खुदा को ना मानना
आब---- पानी
सरापा---- सिर से पांव तक
नासेह---- उपदेशक
बाम--- छत
यूं बेशुमार दर्द मेरी दास्ताँ में छिपा था
जवाब देंहटाएंजब बुत को सुनाया तो वो भी रो गया
बहुत ही भावपूर्ण रचना .... प्रस्तुति के लिए बधाई
बेहतरीन गजल..
जवाब देंहटाएंvandana shukla
khoob kahi... nice ghazal..
जवाब देंहटाएंएक याद का बादल मुझे सरापा धो गया...
जवाब देंहटाएंI always like the Urdu touch in your writing... it makes it so beautiful.
manju
बहुत ही सुन्दर रचना......
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