कई दिन बाद दिल ने कुछ कहा तो कुछ लिख दिया
मसरूफियत में रहा हो उसी का ख़याल जैसे
गमे-रोज़गार भर में शिद्दत से ढूँढा जिसको
बहार का एक झोंका उडा ले गया उसे जैसे
शब् भर करा था सोचा कि वस्ल का हो दिन
नसीमे-सुबह ही दिखी कोई रकीब हो जैसे
मेरी खामोशी को वो गुमां समझ बैठे कुछ यूं
मेरे अलफ़ाज़ भी जो हो फ़क़त बे-मायने जैसे
मैं तो वोही ही हूँ, जो मिला था तुझको पहले
हालात बदल गए कुछ किसी बेवफा के जैसे
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