नन्ही सी बूँदें खिलखिलाना भूल गईं हैं
ज़रूर आज मेरा कोई तन्हाई में रोया है
अल्लाह, क्या इसी का है नाम मजबूरी
जो उसे सहारा देने का हक हमने खोया है
आरजू है अपना बना लूं उसका हरेक दर्द
ये मुराद रख के हर रात दिल ये सोया है
मेरी जां तू जान है मेरी, हरेक धड़कन की
दिल की ज़मीं पे ये खयाल आरजू ने बोया है
तेरे इंतज़ार में यूं जी रहे हैं मौत सी ज़िंदगी
जूं हरेक ज़ख्म मेरे ही खूं ने ही धोया है
बस एक बार आ, ओ एक-दूजे के हो जाएँ हम
तसव्वुर इस गरीब ने बस तेरे लिए संजोया है
नन्ही सी बूँदें खिलखिलाना भूल गईं हैं
जवाब देंहटाएंज़रूर आज मेरा कोई तन्हाई में रोया है
सुन्दर रचना प्रस्तुति..आभार
खुबसूरत शेर दिल की गहराई से लिखा गया बधाई
जवाब देंहटाएंbehad khoobsurat bhav .... badhai
जवाब देंहटाएंदिल की ज़मीं पे ये खयाल आरजू ने बोया है...
जवाब देंहटाएंबहुत ही ख़ूबसूरत ख़याल ! और शब्दों का इतना सुन्दर प्रयोग... बस लाजवाब
kuchh warso ki jma thosh udashi ko aapke is khubsurat kyal ne taral bna diya...........
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