भाई वीनस केशरी की प्रेरणा से
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उधर की आह यहाँ के अश्क से बयाँ होती है
ये तो तिज़ारते -इश्क है जो यूं ही जवां होती है
तू ना सोच के तेरे दर्द से बावस्ता नहीं हूँ मैं
तिरी हर शब् मेरी सिलवटो से बयाँ होती है
ये कोई खुदायी नहीं, चाह है इक उम्मीद की
जो हो जाती तो है पर मुक़म्मल कहाँ होती है
मुझसे सुनो यारों तन्हाई की ये दास्ताँ मिरी
जो साथ हो के भी मेरी हमसफ़र कहाँ होती है
वो जो कहलायें पयम्बर या कोई दरवेश
किसी ना किसी हिज्र पे उनकी भी जुबान सोती है
ek achhi gazal k liye badhai
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