मैं रत्नाकर
सोमवार, अप्रैल 02, 2012
अनजाने शायर के लिये
दोस्तों हाल ही में इक बस पर लिखा शेर पढ़ा जो बेहद अच्छा लगा। पता नहीं उसका लेखक कौन है लेकिन जो भी है उसे मेरा सलाम, आप भी देखिये क्या खूब लिखा है
शाम के साए बालिश्तों से नापे हैं
चाँद, कितनी देर लगा दी आने में
2 टिप्पणियां:
प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ'
6/04/2012 1:47 am
उम्दा...बहुत बहुत बधाई...
जवाब दें
हटाएं
उत्तर
जवाब दें
बेनामी
6/21/2012 11:59 pm
wah kya khoob kaha hai...
जवाब दें
हटाएं
उत्तर
जवाब दें
टिप्पणी जोड़ें
ज़्यादा लोड करें...
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
उम्दा...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंwah kya khoob kaha hai...
जवाब देंहटाएं