मेरी एक ताज़ा रचना सादर पेश है
कुछ यूं जुनूं की हद से गुज़र जाएं
देखें आइना ओ, खुद पे ही मर जाएं
नाम तो उस ख़ास का ना ले सकेंगे लब
तो लें आइना ओ, तेरे रूबरू धर आयें
तो लें आइना ओ, तेरे रूबरू धर आयें
मुद्दतों में मिला सुराग इक खुशी का
कैसे छोड़ें उसे ओ, साकी के दर पे जाएँ
ज़हर ही का नाम अब हो गया दवा
नासेह जाएँ अब ओ, यार दर पे आयें
पा ना सकेगा ऐसे रूहानी इश्क कोई
नाम लें वो उसका ओ, फिर मर के आयें
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