आसमान,
अश्क बहाते हो ओस की सूरत में
भीतर छिपा के सारे रंज-ओ-गम
तमाम रातों में यूं चुपचाप रोना
फिर दिन में यूं खिला नज़र आना
मानो बीती रात कुछ हुआ ही नहीं हो
आसमान
मुझे भी सिखा दो अपना ये हुनर
कि बहुत कुछ समेटे हुए भीतर
पूरी खामोशी के साथ, तमाम रातों में
मैं हर लम्हा सिर्फ रोना चाहता हूँ
सुबह होने तक बस ऐसे ही.............
रत्नाकर त्रिपाठी
अश्क बहाते हो ओस की सूरत में
भीतर छिपा के सारे रंज-ओ-गम
तमाम रातों में यूं चुपचाप रोना
फिर दिन में यूं खिला नज़र आना
मानो बीती रात कुछ हुआ ही नहीं हो
आसमान
मुझे भी सिखा दो अपना ये हुनर
कि बहुत कुछ समेटे हुए भीतर
पूरी खामोशी के साथ, तमाम रातों में
मैं हर लम्हा सिर्फ रोना चाहता हूँ
सुबह होने तक बस ऐसे ही.............
रत्नाकर त्रिपाठी
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