सदियों तक खून के आंसू रोती मिली थी
वो सुई, जिसने शायर की जुबां सिली थी
सदियों तक पशेमा हाल में ही मिली थी
वो घड़ी, जिसमे इश्क की नीव हिली थी
सदियों तक बस अश्क बहाती मिली थी
वो दीद, जिसमें गैर की तस्वीर खिली थी
सदियों तक खिज़ा के असर में मिली थी
वो कली, जिसको कांटे की चाह दिली थी
सदियों तक मुझे ही पुकारती मिली थी
वो आह, जिसमें कोई याद भी मिली थी
रत्नाकर त्रिपाठी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें