बहुत दिनों के बाद कुछ लिखा है
तपती दोपहरी में जब बदली कोई छायी है
बा-रास्ते -हाफीजा एक ज़ुल्फ़ चली आयी है
ग़ाफ़िल रही ख्वाबों में मुझ-सी तमाम शब
इसी वजह आज सहर आँख मली आयी है
खूं ओ अश्क़ से सींचा है मोहोब्बत का सेहरा
मुद्दतों में तब कहीं आरज़ू की कली आयी है
भुला पीठ के ज़ख्म गले लगाना हरेक को
वफ़ा की ऐसी रीत हमसे ही चली आयी है
कुछ यूं सुलग उठे वो तरदामनी पे मेरी
आह उनकी मुझ तक आज जली आयी है
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रत्नाकर त्रिपाठी
तपती दोपहरी में जब बदली कोई छायी है
बा-रास्ते -हाफीजा एक ज़ुल्फ़ चली आयी है
ग़ाफ़िल रही ख्वाबों में मुझ-सी तमाम शब
इसी वजह आज सहर आँख मली आयी है
खूं ओ अश्क़ से सींचा है मोहोब्बत का सेहरा
मुद्दतों में तब कहीं आरज़ू की कली आयी है
भुला पीठ के ज़ख्म गले लगाना हरेक को
वफ़ा की ऐसी रीत हमसे ही चली आयी है
कुछ यूं सुलग उठे वो तरदामनी पे मेरी
आह उनकी मुझ तक आज जली आयी है
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रत्नाकर त्रिपाठी
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