जैसे ही शबाब पर आया अँधेरे का गाढ़ापन
जागा हुआ कोई जिस्म काँप उठा
तुरंत छिपाया तकिया
अलमारी में क़ैद कर दिए कागज़
गद्दे के नीचे छिपा दिया चिकना कागज़
धो दिया पूरा चेहरा
..............................................
वो शबाब था, सुबह के आने का निशान
तकिया भीगा हुआ था आंसुओं से
कागज़ में थे "किसी" को न भेजे ख़त
चिकना कागज़ था, किसी "ख़ास" की तस्वीर
पूरा चेहरा था, अश्कों की नमी में लिपटा
.............................................
फिर, ओढ़ कर नाकामियों की चादर
बना कर खामोश जज्बों का तकिया
कील सी चुभने वाली यादों की सेज पर
कोई लेट गया, नींद की तलाश में
रत्नाकर त्रिपाठी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें