कुछ लिखा है
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मुसव्विर हाथ हो या हो कोई मुसाफिर कदम
मुन्तजिर हैं सभी बस इक तेरे इशारे के
खिले तेरी ज़ुल्फ़ की चमक या हो तेरी आवाज़
डूबती कश्ती को पता दे हैं ये किनारे के
हो कोई लिबास और हो कोई भी सिन्गार तेरा
खींच लाता है तेरे पास हरेक चौबारे से
तेरा वो लफ्ज़ कि चलो मिलते हैं फिर कभी
अहेसास देता है तकदीर के सहारे से
तू खुश रहे, महफिलों की रौनक कहलाये तू
हमें नहीं फुर्सत, यूं ग़मों के गुज़ारे से
काश! कि एक सी लिखी होती तकदीर हमारी
तो आंसू भी हमारे चमकते शरारे से
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मुसव्विर- चित्रकार, पेंटर
मुन्तजिर- ज़रूरतमद
तेरा वो लफ्ज़ कि चलो मिलते हैं फिर कभी
जवाब देंहटाएंअहेसास देता है तकदीर के सहारे से
BAHUT HEE KHOOBSURAT GAJAL..BADHAI..
खिले तेरी ज़ुल्फ़ की चमक या हो तेरी आवाज़
जवाब देंहटाएंडूबती कश्ती को पता दे हैं ये किनारे के
bahut khoobsurat ahsaas se labrez hain aapke ashaar..
bahut pasand aaye hain...
bahut shukriya..
Bahut hee khoobsoorat ahsas!!
जवाब देंहटाएंबहुत पसन्द आया
जवाब देंहटाएंहमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
आज पहली बार आना हुआ पर आना सफल हुआ बेहद प्रभावशाली प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
बहुत ही अच्छी रचना ! वाह क्या बात है . चाय के प्याले को देख कर इतनी सुन्दर पंक्तियाँ लिख दी आपने... आज ही आपका हाइकू "खंडहर" भी देखा, बहुत अच्छा लिखा है, आप तो हाइकू expert हैं
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