वो गरमी के आख़िरी दिनों की शाम
जब कहा था तुमने, ये आख़िरी मुलाक़ात है हमारी
और तड़प कर पकड़ लिया था मैंने हाथ तुम्हारा
मैंने कसमें दीं, वादे किये और भर आई थी मेरी आँख
लेकिन नहीं रुक सके तुम
कि शानदार ज़िंदगी इंतज़ार में थी तुम्हारे
उस शाम मेरे दिए जिस गुलाब को फ़ेंक गए तुम
उसके तब वहां बिखरे बीज
आज पौधा बन चुके हैं
उस शाम भरी मेरी आँख
अब खुल कर बहती है
और सींचती है उस गुलाब के पौधे को
उसके फूल मुझे याद दिलाते हैं हमारे साथ गुज़रे पलों की
और कांटे.........
आज भी उस शाम की गरमी सरीखे चुभते हैं
bahut khoobsurat!
जवाब देंहटाएंsunder....
जवाब देंहटाएंसाथ गुजारे पल ....भुलाए नहीं भूलते ...हमेशा चुभते है कांटो से ...
जवाब देंहटाएंbahut achchha likha hai aapne..........bhavpoorna kavita
जवाब देंहटाएंइंसान अपनी ज़िन्दगी को कितने खुबसूरत ढंग से शब्दों का कपडा पहनाता है
जवाब देंहटाएंअच्चा लगा आपके विचार जानकर