वो जो अपने ख्वाबों की मंजिलों को पाते हैं
दुआओं में भला इतना दम कहाँ से लाते हैं
अपनी तो सदाएं दीवार से मिल मिट गईं
वो अपनी बात कैसे फलक तक ले जाते हैं
नाला सुन के मेरा तो संग भी रो पड़ता है
फिर कैसे पत्थर दिल मुझ पे मुस्कुराते हैं
दर्द के जिन टुकड़ों को सुलाता हूँ कागज़ पे
कैसे वो किसी के लब का गीत बन जाते हैं
जिन राहों से मेरा रकीब जा पहुंचा है तेरे दर
मेरे लिए उन राहों पे क्यों बिछते ये कांटे हैं
दर्द के जिन टुकड़ों को सुलाता हूँ कागज़ पे
जवाब देंहटाएंकैसे वो किसी के लब का गीत बन जाते हैं
खुबसूरत शेर दिल की गहराई से लिखा गया, मुवारक हो
अपनी तो सदाएं दीवार से मिल मिट गईं
जवाब देंहटाएंवो अपनी बात कैसे फलक तक ले जाते हैं
" कितनी खुबसूरत बात कही है इस शेर में, बेहद पसंद आई"
regards
दर्द के जिन टुकड़ों को सुलाता हूँ कागज़ पे
जवाब देंहटाएंकैसे वो किसी के लब का गीत बन जाते हैं
बहुत खूबसूरती से भावों को पिरोया...उत्तम प्रस्तुति..बधाई.
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'शब्द सृजन की ओर' में 'साहित्य की अनुपम दीप शिखा : अमृता प्रीतम" (आज जन्म-तिथि पर)
uf...kyaa baat....kyaa baat... kyaa baat.....aur kya likhun main.....
जवाब देंहटाएंदर्द के जिन टुकड़ों को सुलाता हूँ कागज़ पे
जवाब देंहटाएंकैसे वो किसी के लब का गीत बन जाते हैं
खुबसूरत शेर दिल की गहराई से लिखा
अपनी तो सदाएं दीवार से मिल मिट गईं
जवाब देंहटाएंवो अपनी बात कैसे फलक तक ले जाते हैं
हर शेर को दर्द में भिगो दिया है.बहुत बहुत अच्छा लिखते हैं आप..
बधाई.
वो जो अपने ख्वाबों की मंजिलों को पाते हैं
जवाब देंहटाएंदुआओं में भला इतना दम कहाँ से लाते हैं
bahut hee khoobsurat line..dil ko chhoo lene wali gazal ke liye badhayi..
वो जो अपने ख्वाबों की मंजिलों को पाते हैं
जवाब देंहटाएंदुआओं में भला इतना दम कहाँ से लाते हैं
umda panktiyan hai ,,
ratnakar ji aap bahut achchha likhte hain ,, dhanyawad
बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंवंदना
"दर्द के जिन टुकड़ों को सुलाता हूँ कागज़ पे
जवाब देंहटाएंकैसे वो किसी के लब का गीत बन जाते हैं"
ख़ूबसूरत शेर ...भाव जितने सुन्दर शब्दों का चयन भी उतना ही सुन्दर