रविवार, मई 29, 2011

इक और ख्याल

खौफ-ए-रुसवाई से दहलीज पे ठिठके हैं अश्क
जल्द आ ए सावन और सरापा भिगो दे मुझ को

गुरुवार, मई 26, 2011

कुछ यूं ही आया ख्याल

अशआर मेरे नमक की तासीर लिए हैं
प्यास का हो इंतज़ाम तो ही जुबां पे रखना

शुक्रवार, मई 06, 2011

इक और तुकबंदी

कहीं दुआ को उठे हाथ तो ज़ुल्फ़ कहीं बिखर गयी
कुछ यूं मिलते गए साये ओ ज़िंदगी गुज़र गयी


ज़िंदगी को मरकज़ का इक सुराग मिल ही गया
जब उतरती धूप तेरे बाम पर बिखर गयी

सिसके इस क़दर अरमान परदे की क़ैद में
जब आयी उसकी याद तो नकाब भी सिहर गयी

पा के मेरी मोहोब्बत आवारगी को जाने क्या हुआ
मेरा ही नाम पुकारे गयी, जहाँ गयी जिधर गयी

तेरे इनकार से कुछ ऐसे जुडी थी आरजू मेरी
तेरी हरेक ना पे मेरी आरजू और निखर गयी