तेरे नाम का इक फूल मंदिर में छोड़ आया हूँ
कुछ यूं गुनाहे-चाहत मालिक से जोड़ आया हूँ
तेरे नाम का इक आंसू सेहरा में छोड़ आया हूँ
कुछ यूं वहां हरियाली का आगाज़ जोड़ आया हूँ
तेरे नाम का इक शोला दरिया में छोड़ आया हूँ
कुछ यूं लहरों का नाता सरदी से तोड़ आया हूँ
तेरे नाम का इक संग आईने पे छोड़ आया हूँ
कुछ यूं दोनों खामोशों को जुम्बिश से जोड़ आया हूँ
तेरे नाम का इक ख़त बगीचे में छोड़ आया हूँ
कुछ यूं वहां बुलबुलों का पैगाम छोड़ आया हूँ
गुरुवार, अप्रैल 21, 2011
सोमवार, अप्रैल 04, 2011
भाई वीनस केशरी की प्रेरणा से
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उधर की आह यहाँ के अश्क से बयाँ होती है
ये तो तिज़ारते -इश्क है जो यूं ही जवां होती है
तू ना सोच के तेरे दर्द से बावस्ता नहीं हूँ मैं
तिरी हर शब् मेरी सिलवटो से बयाँ होती है
ये कोई खुदायी नहीं, चाह है इक उम्मीद की
जो हो जाती तो है पर मुक़म्मल कहाँ होती है
मुझसे सुनो यारों तन्हाई की ये दास्ताँ मिरी
जो साथ हो के भी मेरी हमसफ़र कहाँ होती है
वो जो कहलायें पयम्बर या कोई दरवेश
किसी ना किसी हिज्र पे उनकी भी जुबान सोती है
hotee hai
भाई वीनस केशरी की प्रेरणा से
ये तो तिज़राते-इश्क है जो यूं ही जवां होती है
तू ना सोच के तेरे दर्द से बावस्ता नहीं हूँ मैं
तिरी हर शब् मेरी सिलवटो से बयाँ होती है
ये कोई खुदायी नहीं, चाह है इक उम्मीद की
जो हो जाती तो है पर मुक़म्मल कहाँ होती है
मुझसे सुनो यारों तन्हाई की ये दास्ताँ मिरी
जो साथ हो के भी मेरी हमसफ़र कहाँ होती है
वो जो कहलायें पयम्बर या कोई दरवेश
किसी ना किसी हिज्र पर उनकी भी जुबां सोती है
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