शुक्रवार, फ़रवरी 22, 2013

तू दानिशमंद.............

एक कतरा जहर का तो मेरे नाम का  होगा
तू दानिशमंद  मेरे भी किसी काम का होगा 

किसी शब् के एक तंगदिल ख्वाब की तरह 
चंद  बूंदों सा ही चेहरा मेरे जाम का होगा 


जो कुछ बचा है उसकी नीलामी तो क्या करूं 
ज़मीर का इस दौर में भला दाम क्या होगा 

उस पूनम पर गिरता है जो चाँद से अमृत 
मेरी किस्मत नहीं, वो तो तेरे बाम का होगा 

तुम करते सियासत मगर ये सोच तो लेते 
किस क़दर ज़ख़्मी दिल मेरे राम का होगा 

रत्नाकर त्रिपाठी 

गुरुवार, फ़रवरी 21, 2013

नींद की तलाश में


जैसे ही शबाब पर आया अँधेरे का गाढ़ापन 
जागा हुआ कोई जिस्म काँप उठा 
तुरंत छिपाया तकिया 
अलमारी में क़ैद कर दिए कागज़ 
गद्दे के नीचे छिपा दिया चिकना कागज़ 
धो दिया पूरा चेहरा 
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वो शबाब था, सुबह के आने का निशान 
तकिया भीगा हुआ था आंसुओं से 
कागज़ में थे "किसी" को न भेजे ख़त 
चिकना कागज़ था, किसी "ख़ास" की तस्वीर 
पूरा चेहरा था, अश्कों की नमी में लिपटा 
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फिर, ओढ़ कर नाकामियों की चादर 
बना कर खामोश जज्बों का तकिया 
कील सी चुभने वाली यादों की सेज पर 
कोई लेट गया, नींद की तलाश में 



रत्नाकर त्रिपाठी 

सोमवार, फ़रवरी 18, 2013

.........बेकाबू किसी समंदर सी

मेरी एक रचना सादर पेश है


मुझ सी थी फितरत उनकी, अंजाम भी मुझ सा होना था 
परदे में रहे जज्बे ओ ज़ख्म, बस चुपके से ही रोना था 

ख्वाहिशें तो मचलती ही रहीं बेकाबू किसी समंदर सी 
उनकी किस्मत में कहाँ साहिल पे रुक के सोना था 

एक नक्शा था जो कब का आसुओं में धुल गया
तेरे दर तक फिर भला कहाँ से जाना होना था

अपने नसीब में जब थी ही नहीं तेरे रुख की धूप
दिल में बोई फसल का बरबाद हश्र ही होना था

वाह री तकदीर की लिखाई का ऐसा गज़ब हाल
तुझको पाने से पहले ही लिखा तुझको खोना था 

बुधवार, फ़रवरी 13, 2013


मेरी एक रचना 


इजहारे-मोहोब्बत क्या किसी दिन का मोहताज़ है?
अपनी नज़र  में तो इश्क का हरेक पल ख़ास है 

किसी दास्ताने-इश्क से करे रश्क कोई क्यूं 
जो था नसीब वाला तू उसी के पास है 

मुसलसल रहेगा इधर वफाओं का सिलसिला 
अगरचे उधर से सदाओं की न कोई आस है 

हर लम्हा तिरा ज़िक्र ओ उस पे हजारों अश्क 
फिर नहीं है बुझती, अजब सी ये प्यास है 

ख्यालों की भी बज़्म कब की है उठ चुकी 
फिर भी लगे है वहाँ किसी का तो वास है