शुक्रवार, नवंबर 23, 2012

खुद पे ही मर जाएं


मेरी एक ताज़ा रचना सादर पेश है 


कुछ यूं जुनूं की हद से गुज़र जाएं
देखें आइना ओ, खुद पे ही मर जाएं


नाम तो उस ख़ास का ना ले सकेंगे लब
तो लें आइना ओ, तेरे रूबरू धर आयें 

मुद्दतों में मिला सुराग इक खुशी का 
कैसे छोड़ें उसे ओ, साकी के दर पे जाएँ
ज़हर ही का नाम अब हो गया दवा 
नासेह जाएँ अब ओ, यार दर पे आयें 

पा ना सकेगा ऐसे रूहानी इश्क कोई 
नाम लें वो उसका ओ, फिर मर के आयें 

बुधवार, नवंबर 07, 2012


मैंने एक कल्पना की है, कृपया देखें 

"जी, नमस्ते, मैं नितिन बोल रहा हूँ "
"कौन नितिन?"
" आपकी पार्टी का अध्यक्ष"
"अध्यक्ष! अच्छा वो पूर्ति वाले? यार तुम गड़बड़ आदमी हो। घपले किये वो तो चलो ठीक था। अब हमारे आदर्शों के लिए उल जुलूल बोल रहे हो "
"जी, कौन आदर्श? वो आदर्श हाउसिंग सोसाइटी वाले?"
" वो नहीं, फिलहाल तो हम उनकी बात कर रहे हैं, क्या नाम है उनका,,,हाँ वो देवानंद। क्या बोल दिया तुमने? उनकी तुलना दाउद से कर डाली"
" बिलकुल नहीं। मैंने तो किसी विवेकानंद के लिए बोला था, देवानंद के लिए कैसे बोलूँगा वो तो मेरे पसंदीदा हीरो हैं"
" हां वो ही जो भी आनंद है, क्या बोल दिया तुमने?"
"मैंने तो कहा था कि , छोडो भी आप, जो बोला था वो छपा है अपने सचिव से कहना कल आप को पढ़ कर सुना देगा। मैं तो ये कह रहा था कि ............"
" अरे बात मत बदलो। और अगर तुम को तुलना करनी भी थी  तो किसी और से करते। तुलना उस दाउद से कर डाली जो विदेश में बैठा है। तुलना करने के लिए कोई स्वदेशी भाई नहीं मिला क्या? तुम जानते नहीं हो क्या कि  स्वदेशी के प्रति हमारा कितना आग्रह है, प्रेम है  ............?"
" स्वदेशी कौन? आप ही बता दें। मुझे तो कोई भी इतने बड़े क़द का नहीं लगता जिस से दाउद की तुलना करता ............"
" बको मत!अरे! अपना गवली है, छोटा राजन है, मुदलियार था, इन से तुलना कर देते। बल्कि हाजी मस्तान से तुलना करते तो स्वदेशी की भावना का संरक्षण तो होता ही, साथ ही यह सन्देश भी जाता कि हमारी पार्टी अल्पसंख्यकों को बराबर का सम्मान प्रदान करती है" 
कुछ देर चुप्पी फिर " अच्छा ये बताओ ये क्या नाम है  ............हां वो आनंद का आईडिया तुम्हें किसने दिया था?"
" वो आयोजन से एक रात पहले मैं शिकागो ब्यूटी की साईट देख रहा था, उस पर गलती से विवेकानंद जैसे कुछ फोटो भी पड़े हुए थे, साईट देर तक देखता रहा तो नींद ठीक से नहीं हुई थी, भाषण देने खड़ा हुआ तो खुमारी में विवेकानंद ही याद आ गया, वरना ऐसी गलती नहीं होती"
"गलती नहीं होती, मतलब? "
"मैंने सोचा था राम पर कुछ बोलूँगा ............"
"राम पर! अरे यार तुम बेवकूफ हो क्या, राम अब outdated हो चुका है, उससे तो अच्छा था कि तुम कृष्ण पर कुछ बोलते ............ कम से कम हमारे यहाँ उसका नाम तो अभी भी चलता ही है"
" अजी छोडिये! हमारे यहाँ तो "कृष्ण" भी  outdated है, बेचारा यात्रायें करते हुए थक गया है, अब तो 'मुरली' के बजने की भी कम ही उम्मीद नज़र आती है। सब कल की बातें हैं हम किसी भी बात पर "अटल" कहाँ रहे हैं? अब तो बस इस बात का संतोष है कि  पार्टी ने संघर्ष कर स्वतंत्र भारत यानी "स्वराज" की प्राप्ती कर ली, वरना लोग तो हमें किसी "महाजन" की नज़र से ही देखते थे, अब तो हम स्वराज प्राप्ति से ही संतोष कर लेंगे " 
" समझदार हो, काफी आगे जाओगे............"
" आगे ही जा रहा था, पता नहीं ये विवेकानंद कहाँ से आ गया............अब आप ही कुछ करो"
"............हूँ............ये विवेकानंद करता क्या था? कुछ धंधा............मेरा मतलब बिज़नस?"
" धंधा करता तो मेरी जगह वो हमारी पार्टी का अध्यक्ष नहीं होता? शायद अच्छा स्टेज आर्टिस्ट था। मिमिक्री वगैरह करता रहा होगा। कहते हैं शिकागो जाकर भी उसने मंच लूट लिया था"
" दाउद भी बाहर जाकर वाहवाही ही लूट रहा है, फिर तो यार तुम्हारी तुलना गलत नहीं थी............दोनों ने ही देश के बाहर ............"
" आपने समझ लिया लेकिन अपने ही इसे नहीं समझ रहे, ये देवरमलानी सरीखे लोग तो मेरे जान के दुश्मन बन गए हैं।" 
" छोडो, हम तुमसे खुश हैं, आराम से सो जाओ, कल हम ट्वीट कर देंगे, तुम्हारे पक्ष में"
"लेकिन ये ट्वीट भी विदेशी है और हम स्वदेशी, कोई कुछ बोलेगा ............तो?"
" अरे मूर्ख! तब हम कह देंगे कि स्वदेशी भी outdated हो चूका है"
" धन्य हैं आप, आप की जय हो"
" धन्य मैं नहीं "हम" हैं। अरे जब राम को कोने में खड़ा कर दिया तो इस स्वदेशी की भला क्या बिसात है? आराम से सो जाओ ............जय राम जी  की............उफ़! ये आदत न जाने कब जायेगी, मेरा मतलब गुड नाईट।
" जी गुड नाईट, जय राम जी की तो  outdated हो चूका है ............

मंगलवार, अक्तूबर 30, 2012

mere desh ka sandy

अमेरिका के सैंडी प्रभावितों के लिए मेरे पूरी सहानुभूति है, ईश्वर न करे लेकिन यदि ऐसा कुछ वाकिया हिंदुस्तान में होता तो क्या प्रतिक्रिया होती  इस की मैंने कल्पना की है 
- नेता जी टीवी पर आँखें गडाए हुए गुदगुदाते चेहरे के साथ मशगूल थे, अचानक रंग में भंग हुआ और उनका निज सचिव हाज़िर था। 
"बोलो " उकताए स्वर में नेता जी बोले,
 "सर माफी चाहता हूँ लेकिन एक ज़रूरी सूचना देनी थी" निज सचिव डरते हुए बोला, 
"ज़रूरी सूचना" नेता जी सजग हो गए और सौम्य भी "अरे भाई! ज़रूरी बात है तो डर  क्यों रहे हो, बोलो,,,,,,,,," 
"सर, वो सैंडी आने वाला है " 
"सैंडी! ये कौन सा ठेकेदार है और इसका कौन सा प्रोजेक्ट हमने अटका कर रखा है?" नेताजी के स्वर की उत्सुकता बढ़ गयी।
 "सर, वो ठेकेदार नहीं बल्कि तूफ़ान है, बेहद खतरनाक है "
अफसर ने "खतरनाक " शब्द का जानबूझकर इस्तेमाल किया था ताकि नेता को डिस्टर्ब करने का सही हक जता  सके, लेकिन लगता था कि बात नहीं बनी। नेताजी का चेहरा बुझ गया, उन्होंने अफसर को घूरा और फिर टीवी पर नज़र लगाई। वहाँ नेताजी की पसंदीदा श्रेणी की , मानव शरीर की संरचना तथा उसके रोचक प्रयोग, की जानकारी देने वाली डीवीडी चल रही थी। इस शिक्षाप्रद आनंद को तो कोई मालदार ठेकेदार ही भंग कर सकता था, तूफ़ान की ऐसी औकात भला हो सकती थी! लेकिन करेला और नीम चढ़ा की तर्ज़ पर नादान और उस पर पढ़ा-लिखा अफसर इस शाश्वत सत्य से अनजान था। वो सिर  झुका कर खड़ा हो गया
"तूफ़ान हमारे यहाँ आ रहा है?" नेताजी ने कुछ देर बाद  ऐसी बेरुखी के साथ पूछा जैसे अफसर से पूछ रहे हों कि "देश ठीक चल रहा है?"
"जी सर, बिलकुल हमारे यहाँ ही आ रहा है" अफसर के स्वर में आशा का संचार होने लगा वो उत्साह से चहकने के अंदाज़ में बोला "वो आएगा तो समुद्र में भयानक हलचल मचेगी, किनारे तक तबाही मच जायेगी और,,,,,,,,,,,,,,,,,"
अचानक उसके उत्साह पर नेताजी की घूरती निगाहो ने ने ब्रेक लगा दिया "अबे बेवकूफ ये हमारे यहाँ समुद्र कहाँ से आ गया?"
"हैं न सर, केरल, मुंबई, तमिलनाडु, गोवा और ऐसी कई जगहों पर हमारे देश में समुद्र है" अफसर कुछ घिघियाते हुए बोला और नेताजी के भाव को भांप कर अगली गाली खाने की मुद्रा में तत्पर नज़र आने लगा 
"तुम साले मूर्ख ही रहोगे,,,अबे हमारे यहाँ से हमारा मतलब हमारे संसदीय क्षेत्र से था, ये केरल-वेरल क्या लगा रखा है?"
"आप केंद्र में मंत्री हैं,,,,,,," अफसर ने नेताजी की याददाश्त दुरुस्त करने की ड्यूटी पूरी करने की गरज से कहा " मैंने सोचा,,,,"
नेताजी अफसर की मूर्खता पर मंद-मंद मुस्कुराते हुए टीवी को मुग्ध भाव से देखने में दोबारा तल्लीन हो गए,,,,,फिर कुछ सोच कर बोले "ये साला सैंडी कब तक आएगा?"
"सर, आज की रात "
"हूँ,,,,,,,ये दिल्ली में समुद्र है क्या? " नेताजी पहली बार कुछ चिंतित नज़र आये 
"नहीं सर " अफसर राहत देने के अंदाज़ में बोला,,,"यहाँ सैंडी नहीं आ सकता "
"और ससुरा समुद्र तो हमारे संसदीय क्षेत्र से कोसों दूर तक भी नहीं है,,,," नेता जी भारी राहत के अंदाज़ में बोले और उन्होंने दीवार पर लगी अपने अराध्य की फोटो को नमन कर लिया, पूरी श्रद्धा के साथ। अब वे सुरक्षा के बोध से आत्मविश्वास से भरे नज़र आ रहे थे। 
अफसर ने मौके का लाभ उठाने की गरज से कहा "हम भी आप के इलाके के ही हैं सर, वहाँ सैंडी आता तो बड़ी तबाही मच जाती,,,,,,,"
"हाँ भैया! न जाने हमारे कितने मतदाता कम कर जाता साला ये तूफ़ान,,,हम तो बर्बाद हो जाते " नेताजी क्षणिक तौर पर गंभीर हो गए। लेकिन वे इतने भी गंभीर नहीं थे कि अफसर को डीवीडी प्लेयर को पॉज मोड पर करने की ज़रुरत महसूस होती। वो नेताजी का अतीत जानता था। नेताजी का जीवन तूफानों से संघर्ष में ही गुज़रा था।, युवावस्था में वो कई हमउम्र लड़कियों के भाई  तथा पिता द्वारा उठाये गए तूफ़ान का सफलतापूर्वक मुकाबला कर चुके थे, पैसे कमाने के संघर्ष में वे चोरी से ले कर उठाईगिरी और ठेके पर हत्या जैसे हथकंडों के सम्मान की खातिर पुलिस के तूफानों का कामयाबी के साथ सामना कर चुके थे, राजनीति में आज का मुकाम हासिल करने के लिए वे अपनी अंतरात्मा से उठते सच्चाई तथा नैतिक और चारित्रिक मूल्यों के तूफ़ान को कुचल चुके थे, अब क्या ऐसा संघर्षशील व्यक्तित्व सैंडी से घबराता? वो भी तब जब न दिल्ली में समुद्र था और न ही नेता के संसदीय क्षेत्र में।  
"अब क्या करें सर,,,,,?" अफसर आत्मविश्वास से भरा बोलता गया "फिलहाल बचाव के उपाय कर लें? भारी नुकसान होना  तो  तय है"
"हूँ,,,,,," नेताजी गंभीर हो गए "ये समुद्र कहाँ-कहाँ बताये थे तुमने?"
अफसर ने नाम गिना दिए और एक ही सांस में ये काम पूरा करने के बाद इस तसल्ली के साथ खड़ा हो गया कि देश में पर्याप्त जगह समुद्र हैं। 
"बस, इतने से समुद्र! कुछ बढाओ भाई, ऐसे कैसे चलेगा।" नेताजी निराश नज़र आने लगे थे
अफसर इस निराशा की प्रत्याशा में और उसे आशा में बदलने के लिए तैयार था, बोला "इतने बहुत हैं सर, मैंने कहा न खतरनाक तूफ़ान है, भयानक तबाही लायेगा  "
"चलो तू कहता है तो मान लेता हूँ,,,,," नेताजी के स्वर में नैराश्य पूरी तरह नहीं कम हो रहा था, फिर भी वे जैसे खुद को आश्वस्त करने में लगे हुए थे 
"चलो, अपने वाले अफसरों की टीम बनाओ, आज ही रात सब को इन जगहों पर भेज दो, अभी से आंकड़े थमा दो कि कितनी क्षति हुई और कितने मरे,,,,,," नेताजी बेहद अभ्यस्त अंदाज़ में किसी माहिर क्षतिबाज़ की तरह बोलते चले जा रहे थे - ",,,,,,,राहत राशि के लिए बड़े देशों और संगठनो को जो पत्र  लिखो, उसमे भले ही  प्रभावित जगहों की आबादी से ज्यादा की मौत बता दो लेकिन संसद में उत्तर देने और अखबारों में बयान देने के लिए मौत का आंकड़ा बेहद कम हो,,,,किसी सड़क दुर्घटना जितना,,,,," नेताजी का हुनर देख मन्त्र मुग्ध था अफसर। नेताजी बोले " विदेश और बड़े संगठनों से मिली मदद का काम तुम देखोगे, तुम हमारा ध्यान रखना और हम तुम्हारा,,,,,," यह कहते-कहते नेताजी के चेहरे पर भाईचारे का ऐसा भाव आ चुका  था जो महात्मा गाँधी शीर्षासन जितनी मेहनत / प्रयास करने के बाद भी इस देश में नहीं ला सकते थे। 
अचानक नेताजी के चेहरे पर प्रश्नवाचक चिन्ह आ गया, अफसर से गंभीर होकर बोले "तुम्हारी बिटिया की शादी कब है?" 
"छः महीने  बाद सर "
"हूँ,,,, तब तक तो अधिकतर राहत राशि आ ही चुकी होगी " नेता ने कहा और इसके साथ थी उसके और अफसर के चेहरे पर आश्वासन नज़र आने लगा, , उसी आश्वस्त अंदाज़ में नेता ने बोला "तब तक हमारी पत्नी भी यूरोप यात्रा में काम आने लायक इंग्लिश सीख चुकी होंगी, अब वहां जाएंगी तो शौपिंग भी तो करनी होगी न, तब इंग्लिश काम आ जायेगी"
"और सर, प्रभावित इलाकों में क्या बाटेंगे?" अफसर यूं उपेक्षित अंदाज़ में बोला जैसे किसी शाही भोज की योजना के अंत में सबसे गैर ज़रूरी सवाल के तौर पर पूछ रहा हो कि "भिखारियों को बचा हुआ खाना देना है क्या, वरना खाना सड़ जायेगा"
"छः महीने के बाद जो राहत की रकम आये उसमें से हमारा और तुम्हारा जेब खर्च निकल कर बाकी उन इलाकों में बाँट देना। वो बेचारे तुम्हारी बेटी के सुखमय वैवाहिक जीवन और हमारी पत्नी की सुखद यूरोप यात्रा के लिए दुआएं देंगे,,,,,,,,," नेता जी अपनी पेशागत मूल छवि से सर्वथा अलग किसी वास्तविक परोपकारी की तरह दिख रहे थे। 
अफसर वहाँ से निकलने को ही था कि अचानक नेताजी के स्वर में उसे गुर्राहट और नैराश्य का मिला-जुला अहसास हुआ। अनुभव के पके अफसर ने बिना किसी क्लू की ज़रुरत महसूस किये बगैर टीवी की तरफ  देखा।  वहां डीवीडी अटक गयी थी। अफसर जान गया कि साला सैंडी से भले ही कोई बच जाए लेकिन ऐसी  डीवीडी देने वाले को तो अब साक्षात् भगवान् भी नहीं बचा सकता है 

सोमवार, अक्तूबर 15, 2012

आरोप और विवादों से घिरे सलमान खुर्शीद इस समय बौखालट में और क्या कर सकते हैं, मैंने इसकी कल्पना की है 
खुर्शीद का ख़त फिल्म स्टार सलमान के नाम 
प्रिय सल्लू भाई, "हेल्लो ब्रदर "आप कितने अच्छे इंसान हो, इसलिए कि आपका नाम भी 'एस' अक्षर से शुरू होता है और मेरा भी इसी अक्षर से शुरू होता है। मेरी ही तरह आपका सरनेम भी 'के' से ही शुरू होता है। यकीन कीजिये इन शब्दों से शुरू होने वाले नाम और सरनेम बेहद भले लोगों के होते हैं। हम दोनों किसी "जुड़वाँ " या "करण -अर्जुन " की तरह "हीरोज " हैं, आप बड़े परदे पर छाये हुए हो और मेरा चर्चा छोटे परदे पर है,  लेकिन फिलहाल मैं मुसीबत में हूँ और भरे मन से आपको ख़त लिख रहा हूँ। मैंने क्या गलत किया। एक ट्रस्ट बनाकर "चोरी-चोरी, चुपके-चुपके " कुछ गड़बड़ ही तो की तो क्या इतनी सी बात पर मैं "कुर्बान " कर दिया जाऊँगा ? अरे मेरी तो "बीवी नम्बर वन" इस ट्रस्ट के ज़रिये इतनी "खामोशी" के साथ काम कर रही थी कि  लोगों को उस पर "गर्व " होना चाहिए था। मगर क्या कहें इस केजरीवाल ने आज तक के साथ मिलकर "नो एंट्री" जोन में प्रवेश किया और मुझ सरीखे कांग्रेस के "युवराज" को किसी अपराधी की तरह "वांटेड" बना दिया।  मैंने सोचा था कि  मेरी "जानेमन" कांग्रेस पार्टी के मेरे "पार्टनर" संकट में मेरे साथ होंगे मगर वो तो मुझे यूं देखते हैं मानो मुझ से पूछ रहे हों "हम आप के हैं कौन? " आप ही बताओ मेरी बीवी की क्या गलती है? मैंने ही तो उससे कभी पूछा था कि "मुझसे शादी करोगी" अब जब शादी हो ही गयी तो क्या संकट के इन पलों में मैं ये कहूं कि "शादी करके फँस गया यार" कांग्रेस में तो कोई "बाबुल " नज़र नहीं आता जो मुझे बचा ले, उस पर मीडिया वाले और केजरीवाल मेरे सपने में आकर "फिर मिलेंगे" की धमकी देकर डरा जाते हैं। जबकि इससे पहले तक मैं "लन्दन ड्रीम्स" में डूबा रहता था और "इश्क इन पेरिस " के भी सपने देखता था । अब तो इतना परेशान हूँ कि कभी कभी मन होता है कि ऊपर वाले से पूछूं कि "गॉड तुस्सी ग्रेट हो " इसलिए "टेल मी ओ खुदा" मेरी पार्टी ने मेरे साथ "ये दूरियां " क्यों बना ली हैं? सब "संगदिल सनम" हैं "पत्थर के फूल "  जैसे नक़ली हैं। "क्यों कि "मैंने इस पार्टी से दिल से "लव" किया है पार्टी कहे तो मैं किसी भी जाँच के लिए "रेडी" हूँ, लेकिन वहाँ से कोई तो मुझे आश्वासन दे कि "हम साथ- साथ हैं " आप तो जानते हो कि "जब प्यार किसी से होता है " तो वो किसी "बंधन " की तरह होता है और है और हम किसी "वीर " की तरह कह सकते हैं कि "प्यार किया तो डरना क्या " मैंने भी कांग्रेस से प्यार किया है ये पार्टी तो मेरे लिए "चाँद का टुकड़ा " है, मेरी "चंद्रमुखी" है। फिर क्यों ये पार्टी मुझे "मझधार " में छोड़ने जैसी मुद्रा में नज़र आ रही है? सल्लू भाई हर किसी के काम का "अंदाज़ अपना-अपना " होता है मेरे ट्रस्ट ने एक "निश्चय " के साथ "कुछ-कुछ होता है " की तर्ज़ पर बहुत कुछ किया। "मैं और मिसेस खन्ना " की तरह मैं और मेरी पत्नी ट्रस्ट चलाते रहे। मैं अपनी पत्नी का "साजन " हूँ उसका "सांवरिया " हूँ, अब यदि पत्नी मोह में मैं ट्रस्ट में कुछ गलत कर बैठा तो क्या "वीरगति " को प्राप्त हो जाऊं या ये कह कर सर धुनूं कि "मैंने प्यार क्यों किया " हमने तो ट्रस्ट के पैसे को "दिल ने जिसे अपना कहा " की तर्ज़ पर इस्तेमाल किया  तो क्या गलत किया? अरे, हमारी शान देख कर समर्थक कहा करते थे "ये है जलवा " अब हालात अलग हैं। भाई, चाहूं तो मैं भी "बागी " हो जाऊं किसी "सूर्यवंशी " की तरह डंके की चोट पर "दबंग " अंदाज़ में एलान कर दूं कि "दुल्हन हम ले जायेंगे " लेकिन ऐसा करना नहीं चाहता हूँ। कांग्रेस से तो "मैंने प्यार किया " उससे कहा "दिल तेरा आशिक "  लेकिन भाई "सिर्फ तुम " समझ सकते हो कि मुझे इसका क्या सिला मिला। मैंने पार्टी के नेताओं को अपनी बात समझानी चाही कहा "जानम समझा करो " लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा। अब मैं इस बात को मानने लगा हूँ कि :"हर दिल जो प्यार करेगा  " उसे कोई "बागबान " नहीं मिलेगा। मैं ये नहीं कहता कि तुम किसी "बॉडीगार्ड " की तरह मेरी मदद करो लेकिन मेरी बात तो सुन ही सकते हो। "चल मेरे भाई" ख़त लम्बा हो रहा है, हाँ, आजकल खाली हूँ और ट्रस्ट का पैसा मिलना बंद हो गया है न फिल्म देख पा रहा हूँ न ठीक से खाना नसीब हो रहा है हो सके तो "एक था टाइगर " की डीवीडी भेज देना और संभव हो तो काले हिरन का गोश्त भी साथ भेज देना। तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो और मेरा यह ही मानना है कि हम "तुमको न भूल पाएंगे". रही बात मेरी तो मैं मुझे "दुश्मन दुनिया का " प्रोजेक्ट करने वालों को समय आने पर जवाब दूंगा कि वो किस कदर "फालतू ' बातें करते हैं, घर में सबको मेरा "हेलो' कहना  
तुम्हारा 
सल्लू (सीनियर )

गुरुवार, अक्तूबर 11, 2012


अलग-अलग क्षेत्र की इन हस्तियों को यदि अवकाश लेकर मौजूदा क्षेत्र से अलग गतिविधि संचालित करने के लिए कहा जाये तो वे क्या करेंगे , मैंने इसकी कल्पना की है 
दिग्विजय सिंह- "असत्य के साथ मेरे प्रयोग" शीर्षक से किताब लिखेंगे 
मनमोहन सिंह- मौनी बाबा बनकर आश्रम चलाएंगे 
राहुल गाँधी-'दलित के घर खाना खाएं अपना पैसा बचाएं' शीर्षक से किताब लिखेंगे
मुलायम सिंह यादव  "महमूद गजनवी एक महान हिन्दू धर्म प्रेमी और संरक्षक" शीर्षक से किताब लिखेंगे 
लालकृष्ण अडवाणी - जिन्ना की याद में मंदिर बना कर "जिन्ना चालीसा" का वाचन करेंगे 
विजय माल्या - "गंदे चित्र लगाओ मत, नारी को लजाओ मत " वाले पर्चे पूरे देश में बाटेंगे 
महेश भट्ट- खुजली की दवा का कारखाना चलाएंगे 
करूणानिधि - अपनी सुपुत्री कनिमोझी के साथ मिलकर "बाप नम्बरी बेटी दस नम्बरी" फिल्म बनायेंगे 
कपिल देव- इंग्लिश-विन्ग्लिश का रीमेक बनायेंगे 
लालू यादव- ऐसी दवा  के आविष्कार में जुट जायेंगे जिस से इंसान चारा भी पचा सके 
अटल बिहारी वाजपेयी- भांग को राष्ट्रीय पेय घोषित करने की मुहिम चलाएंगे 
अखिलेश सिंह- उत्तर प्रदेश का नाम पुत्तर प्रदेश करने की मुहिम  चलाएंगे 
नारायण दत्त तिवारी- "इलेक्ट्रोनिक मीडिया वालों को मार डालो सालों को " और "देश ने ये ठाना  है DNA  टेस्ट हटाना है " के नारे बुलंद करेंगे 
हिना रब्बानी- "न उम्र की सीमा हो न जन्म का हो बंधन " पंक्ति वाले गीत के कॉपी राईट पर दावा पेश करेंगी 
प्रवीण महाजन- "यत्र नार्यस्त पूज्यते रमन्ते तत्र देवता" विषय पर प्रवचन माला तैयार करेंगे 
सलमान खान- "मैंने प्यार क्यों  किया " का सिक्वल "मैंने शिकार क्यों किया " बनायेंगे 
आमिर खान- तलाकशुदा महिलाओं के हक में आवाज़ बुलंद करने के लिए संगठन बनायेंगे, वे ग्लीसरीन का व्यापार भी करेंगे और उसे "सत्यमेव जयते" के सेट पर  बेचेंगे, ताकि मुनाफा कमाने के साथ ही कार्यक्रम में रोतलों की संख्या बढ़ायी जा सके। 
बाबा रामदेव- इटली को पांचवा धाम घोषित करवाने के लिए औरतों के कपडे पहन कर आन्दोलन करेंगे 
अमिताभ बच्चन- अपनी पोती के समझदार होने के पहले-पहले "चीनी कम" और "निशब्द " जैसी फिल्मों पर आजीवन प्रतिबन्ध लगाने की मुहिम छेड़ेंगे 
जयराम रमेश - "टॉयलेट शिरोमणी" शीर्षक  का सम्मान शुरू  करने हेतु मुहिम  चलाएंगे 
जयललिता- मशहूर हिंदी फिल्म "मांग भरो सजना " का तमिल संस्करण बनायेंगी 
राज ठाकरे- बिहार और उत्तरप्रदेश में "नाराज  ठाकरे" नाम से क्षेत्रीय राजनीतिक दल बनायेंगे 
शेष फिर

सोमवार, अक्तूबर 08, 2012

कृपया मज़ाक को अन्यथा ना लें 
- देश के ऐसे ही हालत रहे तो आने वाले दिनों में किस तरह की सूचनाएं नज़र आएंगी, इसकी मैंने कल्पना की है 
- कृपया नेत्रहीन लोग देख कर सड़क पार करें, वहां से आँख वाले वाहन  चालक भी आना जाना करते हैं 
- पांव की बाधा से ग्रस्त लोगों के लिये पैडल बोट रेस,,,, दौड़ कर आएं और हिस्सा लें 
- कृपया चिड़ियाघर के पिंज़रे में बंद जानवर को चिढ़ाएं, उसके सामने अजीब चेहरे बना कर विचित्र स्वर निकालें..जानवर बेचारा ये सोच कर बहल जाएगा कि उसके जैसे प्राणी पिंज़रे के बाहर भी मौजूद हैं 
- पैसे के अभाव में इस सड़क/ गलियारा या किसी अन्य सार्वजनिक स्थल पर रंग रोगन नहीं किया जा सका है, कृपया यहाँ पान की पीक थूक कर अपनी रचनाशीलता का परिचय दें और सरकार के सौन्दर्यीकरण कार्यक्रम में सहभागी बनें. 
- पार्क में फूल अवश्य नोचें और उनकी दुर्गत कर दें, वरना वे बेचारे कुदरत के गुलाम बन कर महज पैदा होने और पोधे पर ही पड़े-पड़े मुरझा जाने का अभिशाप झेलते रहेंगे. 
- कृपया सार्वजनिक स्थान पर कचरा फेंकने से पहले सावधानी बरतें कि वो कचरा पेटी में ना गिरे. पेटी की सफाई करने वाले स्टाफ की मेहनत बेकार चली जाएगी 
- वाहनों का कानफाडू हार्न कृपया ठीक ना कराएँ साथ ही साइलेंसर का शोर भी होने दें..चलते वाहन में तेज आवाज़ में गाने ज़रूर बजाएं....ये सब नहीं हुआ तो सड़क सन्नाटे से भर कर भुतहा हो जाएगी और कई लोग डर के मारे मर जाएँगे 
- हेलमेट ना पहनें ना ही सीट बेल्ट लगायें...वरना एक्सिडेंट नहीं होंगे और कई डॉक्टर बेरोजगार हो जाएँगे 
- मूत्र विसर्जन के लिये कृपया सार्वजनिक शौचालयों का प्रयोग ना करें,,,,,वे स्थान आज के उन रचनाधर्मियों के लिये प्रेरणा स्थल चुके हैं जो वहा की दीवारों पर महान काव्य रचने का महान काम कर रहे हैं 
- जब ट्रेन प्लेटफ़ॉर्म पर खड़ी हो तब ही शौचालय का प्रयोग करें ताकि वाहन की पटरी पर पलते बेचारे अभागे और लावारिस गंदे कीड़ों की खुराक का प्रबंध हो सके, साथ ही आप के द्वारा तजे गए पदार्थ की सुवास के जरिये उन लोगों से छुटकारा पाया जा सके जो बगैर किसी ज़रूरी काम से प्लेटफ़ॉर्म पर आ जाते हैं और वहाँ की भीड़ बढ़ा कर अव्यवस्था पैदा करते हैं 

मंगलवार, सितंबर 11, 2012

मेरी एक कहानी सादर प्रस्तुत है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,


अस्पताल  का मुख्य दरवाज़ा बंद होते ही बाहर भागती गाड़ियों और बात करते लोगों का शोर बंद होता जान पडा, लेकिन मेरे भीतर अचानक तूफ़ान उमड़ पड़ा। "मैं यहाँ क्यों आया हूँ?" यह सवाल यूं उठा मानो मुझे नितांत अकेला जान कर मेरा साथ देने चला आया हो। ठीक वैसे ही जैसे किसी अकेले सफ़र के दौरान कोई सहयात्री परिचय की गरज से पूछे "आप कहाँ तक जाएँगे? " अस्पताल के उस सीलन और अँधेरे भरे गलियारे में मेरे सफ़र से पहले भी उस सवाल ने किसी हमसफ़र की तरह पूछा "आप यहाँ किसलिए आए हैं? " मैं भला क्या जवाब देता? मेरे पास कोई जवाब था ही नहीं, किसी भी बात का जवाब नहीं था। यहाँ तक कि अस्पताल की अधीक्षिका की भी इस बात का मैं पूरा उत्तर नहीं दे पाया था कि उस जनाना अस्पताल के प्राइवेट वार्ड नंबर एक में मैं क्यों जाना चाहता था?
"जी,,,,,,,,,वहाँ कुछ रह गया था,,,"
"क्या?"  अधीक्षिका की आँख से टपकती नागवारी उसके चश्मे के मोटे लेंस पर ज्वालामुखी के लावे सी बिखरने लगी थी।
"...मेरी माँ भरती थीं वहां,,,,, उनका,,,," किसी तरह इतना ही बोल सका मैं
"कब थी वो यहाँ,,,?" लावा बहने लगा था
"जी,,,सत्रह साल पहले,,,,"
कोई और होता तो धक्के मार कर अस्पताल से बाहर कर दिया गया होता, मगर यह अलग मामला था।  अधीक्षिका की आँख का लावा अपनी तपिश का अहसास कराने के बावजूद मुझे स्पर्श   नहीं कर सकता था, मेरी एप्रोच के कारण।वो गुस्से और अविश्वास से कसमसा कर रह गयी। मुझे उससे सहानुभूति थी लेकिन मैंने उससे झूठ नहीं बोला था। यकीनन मैं वहाँ कुछ तलाशने आया था और मुझे कतई नहीं पता था कि वह तलाश किस चीज  की थी।

सीढियां ख़त्म होते ही सत्रह साल का बदलाव मेरे सामने था। सधे क़दमों से मैं एक नंबर वार्ड की तरफ चलने लगा। अचानक मोबाइल सक्रिय हो गया। दूसरे सिरे पर मौजूद रेनू, मेरी पत्नी रूंधे गले से कह  रही थी" पापा जी को ले जाने का समय हो रहा है। कहाँ हो आप?"
"कहाँ हूँ मैं!!!! स्टुपिड,,,,," बगैर जवाब दिए झल्लाने के अंदाज़ में फ़ोन बंद करते हुए मैंने मन ही मन कहा,, "पापा जी के साथ ही तो हूँ मैं! दिखता नहीं क्या वो वहां अम्मा को अस्पताल से छुट्टी दिलाने के बाद की औपचारिकताएं पूरी कर रहे हैं, अब देखो वो मेरी ओर ही आ रहे हैं,,, "
पापा जी आये, उनके चेहरे पर तैरते भाव इस बात की गवाही दे रहे थे कि अम्मा के ठीक हो कर घर जाने से उन्हें काफी राहत महसूस हो रही थी। वरना पेट में ट्यूमर, ऑपरेशन, बोतल दर बोतल खून और प्राइवेट वार्ड नंबर एक में लेट कर कराहती अम्मा, इन सबने बीते दिनों में बदल कर रख दिया था पापा जी को।
"चलें?" पापा जी ने मुझ से पूछा। मैं कुछ बोलता इस से पहले ही नौ साल की अंगुलियाँ उनकी मुठ्ठी में जा छिपी थीं। पापा जी सीढ़ियों की तरफ नहीं गए। अचानक मुझे उनके चेहरे पर कुछ उबाल सा दिखा और हम उस प्राइवेट वार्ड नंबर एक की तरफ चल पड़े  जहाँ बीते दिनों तक हमारे बोझिल क़दम जाते थे और जहाँ से अम्मा को ठीक होने के बाद बाहर लाते समय शायद हर किसी ने मन ही मन दोबारा वहाँ न आने की प्रार्थना की थी।
मोबाईल फिर सक्रिय हुआ। गुस्सा आया कि रेनू से चिल्ला कर कहूं कि "जानती नहीं पापा जी के साथ हूँ,,,? आता हूँ अभी,,," लेकिन छब्बीस साल का हाथ मोबाईल तक नहीं गया क्योंकि नौ साल वाला हाथ पापा जी की मुट्ठी में क़ैद है।
हम दोनों प्राइवेट वार्ड नंबर एक के बंद  दरवाज़े पर खड़े हैं। भीतर सन्नाटा है। ट्यूमर की चर्चा,ऑपरेशन का दर्द, दवाईयों की तीखी गंध और अम्मा का बीमार चेहरा, कुछ् भी नहीं है अब वहां पर। खाली वार्ड में कुछ सामान  भरा हुआ है,, वह पलंग भी खाली है जिस पर अम्मा के दर्द को चादर की सिलवट सा महसूस करते थे हम सब। मैं कुछ कहना चाहता था लेकिन पापा जी एकदम चुप हैं। एकटक उस कमरे के भीतर देख रहे हैं। मैंने कमरे के भीतर हर चीज पर उनकी फिसलती निगाहों की परछाई देखी, महसूस किया कि हर चीज उनकी निगाहों से बिधि जा रही है और यह भी कि मेरे हाथ पर उनकी पकड़ बढ़ती जा रही है। काफी देर तक ऐसा ही रहा। अचानक पापा जी पलटे, यह क्या,,,,? ये तो वही पुराने पापा जी हैं, अम्मा को भरती  कराते समय के चिंतातुर चेहरे वाले, ऑपरेशन  रूम के बाहर ईश्वर को याद कर बार-बार आँखे मूँद लेने वाले, अम्मा को चढ़ती खून की बोतलों को भयभीत  निगाहों से देखने वाले पापा जी फिर दिखने लगे थे। उनको ये अचानक क्या हो गया है? यहाँ आने से पहले उनके चेहरे पर आया उबाल बेकाबू नज़र आ रहा है।
छब्बीस साल के "मुझ " का मोबाईल फिर सक्रिय हो उठा, लेकिन मैं नौ साल के "मुझ" के पास हूँ,,पापा जी का हाथ पकडे हुए, वे नाउम्मीदी के साथ प्राइवेट वार्ड नंबर एक के बंद दरवाज़े पर से आँखें हटा रहे हैं। निराशा ऐसी मानो कोई खोज, कोई  बहुत बड़ी खोज की कोशिश नाकाम हो गयी हो।
"पापा जी, अम्मा को बहुत बड़ा ट्यूमर था ना?"
"तुम्हें कैसे पता चला?
"ऑपरेशन रूम में देखा था।।अम्मा को वहाँ से बाहर लाये तो सिस्टर अपने साथ मुझे अन्दर ले गयी और वहाँ की वाश बेसिन पर रखा खून से सना गोला दिखा कर मुझसे बताया था कि वो निकला है अम्मा के पेट से।"
"बहुत बड़ा था न वो,,,?" पापा जी ऐसे बोल रहे हैं जैसे उन्होंने कुछ देखा ही नहीं। अब हम चुपचाप स्कूटर की तरफ आ रहे हैं। पापा जी अचानक फिर से रुक गए हैं,, वो मुझ से कुछ कह रहे हैं। इधर मोबाइल में फिर हलचल हो रही है। लेकिन  मैं पापा जी को ही सुन रहा हूँ
क्या सुन रहा हूँ मैं,,,,,?
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मैं वार्ड के सामने हूँ। छब्बीस साल वाला हाथ उसके बंद दरवाज़े को छू रहा है। भीतर जाने की हिम्मत नहीं है, लेकिन मैं वहाँ जाता हूँ। क्या यह वोही पलंग है? क्या वोही खून और ग्लूकोस की बोतलों का स्टैंड है? क्या ये वोही दीवारें हैं जो अम्मा की कराहों सी कई दिनों तक गूंजती रही थीं?मेरे पास किसी भी बात का जवाब नहीं था।।।मैंने इन सभी का स्पर्श किया और वहाँ से बाहर आ गया। अरे, पापा जी कहाँ चले गए? क्या कह रही थी रेनू कि पापा जी को ले जाने का समय हो गया है!!!!!!
पापा जी अचानक फिर दिखे। मैं उन्हें चलने के लिए बुलाना चाहता हूँ लेकिन वो ऑपरेशन  रूम के भीतर चले गए। भीतर इतनी शांति है कि पापाजी भी नज़र नहीं आ रहे हैं, मैं ऑपरेशन  रूम के वाश बेसिन के पास जाता हूँ। अरे! यहीं तो था वोह ट्यूमर! कहाँ चला गया,,,? वहाँ ट्यूमर नहीं है।।।कहीं भी नहीं। उसकी तलाश में वाश बेसिन पर चली मेरी अंगुलियाँ पानी का गीलापन लिए लौट आती हैं
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पापा जी की अर्थी को मैंने हाथ नहीं लगाया। हर शै से मैं अपना हाथ बचाते हुए चल रहा हूँ। वे शांत चिता पर लेटे  हुए हैं और मैं अशांत खड़ा हुआ हूँ। चिता जली तो मेरा हाथ उसकी लपट की तरफ बढ़ा। बढ़ते -बढ़ते उसने नौ से छब्बीस साल तक के सफ़र की थकान महसूस की। अग्नि के करीब आते ही हथेली पर हलचल होती है। वाश बेसिन का गीलापन आग से मिलकर चिता तक उतरता और वहां से पापा जी तक जाता महसूस होता है। मैं चुपचाप वहाँ से चला आया। पापा जी की आत्मा की शांति के लिए हुई सभा में भी शामिल नहीं हुआ। मेरा मानना है कि अब उन्हें ऐसी किसी दुआ की ज़रुरत भी नहीं है। क्या आज भी नौ साल का मैं पापाजी के साथ स्कूटर के पास खडा हुआ हूँ और सुन रहा हूँ  उनको मुझसे ये कहते हुए कि "तेरी माँ का इलाज तो कराया, मगर उसके दर्द का भागी नहीं बन सका मैं,,,बहुत तड़पी है वो और हम दवा, डॉक्टर, इसी सब में उलझे रहे थे।।।उसका दर्द क्यों नहीं साझा कर सका मैं!!!!!!"
अचानक मेरी आँख भर आयी और आंसू बेसाख्ता बह निकले।

रविवार, जुलाई 15, 2012

kai dinon ke baad......

वो जो तेरे भरोसे पे जहान छोड़ आये हैं
महशर में अपना ही  नाम जोड़ आये हैं

हकीकत में है दुश्वार दो जून की रोटी भी
खयालों में तो आशिक  तारे भी तोड़ लाये हैं

खुशियों की दौलत तो बस है बवाले-जान
अब तो हम गम से ही नाता  जोड़ आये हैं

अपनों की ही बज़्म में परायों से दिखे हम 
मौजूदा बुरे वक़्त में ऐसे भी मोड़ आये हैं

अब क्या रोना तेरी कज अदाई का ए दोस्त
हाँ हम अब  रकीबों में तिरा नाम जोड़ आये हैं

सोमवार, अप्रैल 02, 2012

अनजाने शायर के लिये

दोस्तों हाल ही में इक बस पर लिखा शेर पढ़ा जो बेहद अच्छा लगा। पता नहीं उसका लेखक कौन है लेकिन जो भी है उसे मेरा सलाम, आप भी देखिये क्या खूब लिखा है
शाम के साए बालिश्तों से नापे हैं
चाँद, कितनी देर लगा दी आने में