पहली बार इस शैली की कविता लिख रहा हूँ, शायद किसी को पसंद आ जाए
गरमी की छुट्टी की
वोह दोपहर याद है रेनू ?
जब लिए रिजल्ट हम
साथ लौट रहे थे घर को
स्कार्फ और फ्रोक में तुम
और निक्कर-कमीज़ में था मैं
तुम्हारे पास से आती तेल और पावडर की खुशबू
कितना अपना और पहचाना सा था सब कुछ
फिर सफ़र हुआ ख़तम
हम अपने-अपने घर को चल पड़े
फिर,
अपना-अपना नया स्कूल
अपना-अपना कोर्स
अपना-अपना दायरा
अपना-अपना भविष्य
फिर,
अपना-अपना कोई और................................
यकीन मानो, वोह निक्कर-कमीज़ वाला 'मैं'
आज भी सफ़र के खात्मे पर खड़ा हूँ
गरमी की छुट्टी की
वोह दोपहर याद है रेनू ?
शनिवार, अप्रैल 24, 2010
सोमवार, अप्रैल 19, 2010
मेरे सनम
मुझसे मत यूं रूठ सनम
कि मुझ से गुनाहगार ने
टुकड़ों में किए सबाब
हासिल की कुछ दुआएं
और अल्लाह से मिली नेमत,
इन सब का बना कर मंदिर
उसमें बस तुझे पूजा है
जो तू नहीं
तो वीरान हो जाएगा यह मंदिर
तेरा अहेतराम किया है मैंने
तू कबूल ले इल्तेजा मेरी
मुझ से मत यूं रूठ सनम
कि मुझ से गुनाहगार ने
टुकड़ों में किए सबाब
हासिल की कुछ दुआएं
और अल्लाह से मिली नेमत,
इन सब का बना कर मंदिर
उसमें बस तुझे पूजा है
जो तू नहीं
तो वीरान हो जाएगा यह मंदिर
तेरा अहेतराम किया है मैंने
तू कबूल ले इल्तेजा मेरी
मुझ से मत यूं रूठ सनम
शुक्रवार, अप्रैल 09, 2010
गुरुवार, अप्रैल 08, 2010
मेरे हमसफ़र
कॉलेज के दौर में लिखी थी यह कविता, वोह ३१ अक्टूबर और १ नवम्बर, १९९१ की दरमियानी रात थी। उस रात मेरे साथ सिर्फ सन्नाटा था और किसी साथ की कोई भी उम्मीद रात के कोहरे में गुम हो चुकी थी।
मेरे हमसफ़र
==========
चाँद के दाग
जिस रात आयेंगे और उभर।
पवन उतरेगी नस-नस में
जैसे कोई ज़हर।
चांदनी चुभती रहेगी
बन कर कहर।
तारे बिखेर न पाएँगे छटा
एक भी प्रहर।
ओस दिखायेगी तन-मन पे
अम्ल सा असर।
तम में घिरा संसार
होगा यूं, जैसे मेरा खँडहर।
उस रात
विश्वास के साथ
किसी दरीचे में ठहर
पूछूंगा इनसे
तुम, क्या तुम सब
बनोगे मेरे हमसफ़र????????????????
मेरे हमसफ़र
==========
चाँद के दाग
जिस रात आयेंगे और उभर।
पवन उतरेगी नस-नस में
जैसे कोई ज़हर।
चांदनी चुभती रहेगी
बन कर कहर।
तारे बिखेर न पाएँगे छटा
एक भी प्रहर।
ओस दिखायेगी तन-मन पे
अम्ल सा असर।
तम में घिरा संसार
होगा यूं, जैसे मेरा खँडहर।
उस रात
विश्वास के साथ
किसी दरीचे में ठहर
पूछूंगा इनसे
तुम, क्या तुम सब
बनोगे मेरे हमसफ़र????????????????
बुधवार, अप्रैल 07, 2010
चंद अशआर
अलग-अलग हालत और मूड में मेरे दिमाग में जो आता था वोह लिख कर रख लिया था, आज वोह सब दोबारा लिख कर यूं लग रहा है मानो तिनके समेट रहा हूँ।
इम्तियाज़ नहीं तेरे सितम, मेरी ज़ब्त में
तू हम पे, हम तुझ पे मुस्कुराये जाते हैं
००००००००००००००००००००००००००००००
लडखडाता न जायेगा रिंद तेरे दर से
मयकदा में ऐसा कुछ हो गया है साकी
मय का नशा तो बरक़रार है लेकिन
सुना है तेरा हुस्न अब ढलने लगा है साकी
00000000000000000000000000000
पता नहीं है किसका इंतज़ार ज़िन्दगी को
बस जानता हूँ इतना, कोई आने वाला है
000000000000000000000000000
कभी जो मिली ज़िन्दगी तो पूछूंगा ज़रूर
कैसे हैं वोह, जिनके हाथों सौंप आया था तुझे
00000000000000000000000000000
आसान नहीं है साथ यूं किसी का पा सकना
अपना साया तक धूप में जल कर मिला हमें
0000000000000000000000000000000
कोई पाक दामन नहीं, वोह मेरा कफ़न था नादां
जिसको छू की थी दुआ तुमने मेरे जीने की
00000000000000000000000000000000
http://www.blogger.com/post-create.g?blogID=4661467735689100513
इम्तियाज़ नहीं तेरे सितम, मेरी ज़ब्त में
तू हम पे, हम तुझ पे मुस्कुराये जाते हैं
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लडखडाता न जायेगा रिंद तेरे दर से
मयकदा में ऐसा कुछ हो गया है साकी
मय का नशा तो बरक़रार है लेकिन
सुना है तेरा हुस्न अब ढलने लगा है साकी
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पता नहीं है किसका इंतज़ार ज़िन्दगी को
बस जानता हूँ इतना, कोई आने वाला है
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कभी जो मिली ज़िन्दगी तो पूछूंगा ज़रूर
कैसे हैं वोह, जिनके हाथों सौंप आया था तुझे
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आसान नहीं है साथ यूं किसी का पा सकना
अपना साया तक धूप में जल कर मिला हमें
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कोई पाक दामन नहीं, वोह मेरा कफ़न था नादां
जिसको छू की थी दुआ तुमने मेरे जीने की
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