मंगलवार, सितंबर 11, 2012

मेरी एक कहानी सादर प्रस्तुत है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,


अस्पताल  का मुख्य दरवाज़ा बंद होते ही बाहर भागती गाड़ियों और बात करते लोगों का शोर बंद होता जान पडा, लेकिन मेरे भीतर अचानक तूफ़ान उमड़ पड़ा। "मैं यहाँ क्यों आया हूँ?" यह सवाल यूं उठा मानो मुझे नितांत अकेला जान कर मेरा साथ देने चला आया हो। ठीक वैसे ही जैसे किसी अकेले सफ़र के दौरान कोई सहयात्री परिचय की गरज से पूछे "आप कहाँ तक जाएँगे? " अस्पताल के उस सीलन और अँधेरे भरे गलियारे में मेरे सफ़र से पहले भी उस सवाल ने किसी हमसफ़र की तरह पूछा "आप यहाँ किसलिए आए हैं? " मैं भला क्या जवाब देता? मेरे पास कोई जवाब था ही नहीं, किसी भी बात का जवाब नहीं था। यहाँ तक कि अस्पताल की अधीक्षिका की भी इस बात का मैं पूरा उत्तर नहीं दे पाया था कि उस जनाना अस्पताल के प्राइवेट वार्ड नंबर एक में मैं क्यों जाना चाहता था?
"जी,,,,,,,,,वहाँ कुछ रह गया था,,,"
"क्या?"  अधीक्षिका की आँख से टपकती नागवारी उसके चश्मे के मोटे लेंस पर ज्वालामुखी के लावे सी बिखरने लगी थी।
"...मेरी माँ भरती थीं वहां,,,,, उनका,,,," किसी तरह इतना ही बोल सका मैं
"कब थी वो यहाँ,,,?" लावा बहने लगा था
"जी,,,सत्रह साल पहले,,,,"
कोई और होता तो धक्के मार कर अस्पताल से बाहर कर दिया गया होता, मगर यह अलग मामला था।  अधीक्षिका की आँख का लावा अपनी तपिश का अहसास कराने के बावजूद मुझे स्पर्श   नहीं कर सकता था, मेरी एप्रोच के कारण।वो गुस्से और अविश्वास से कसमसा कर रह गयी। मुझे उससे सहानुभूति थी लेकिन मैंने उससे झूठ नहीं बोला था। यकीनन मैं वहाँ कुछ तलाशने आया था और मुझे कतई नहीं पता था कि वह तलाश किस चीज  की थी।

सीढियां ख़त्म होते ही सत्रह साल का बदलाव मेरे सामने था। सधे क़दमों से मैं एक नंबर वार्ड की तरफ चलने लगा। अचानक मोबाइल सक्रिय हो गया। दूसरे सिरे पर मौजूद रेनू, मेरी पत्नी रूंधे गले से कह  रही थी" पापा जी को ले जाने का समय हो रहा है। कहाँ हो आप?"
"कहाँ हूँ मैं!!!! स्टुपिड,,,,," बगैर जवाब दिए झल्लाने के अंदाज़ में फ़ोन बंद करते हुए मैंने मन ही मन कहा,, "पापा जी के साथ ही तो हूँ मैं! दिखता नहीं क्या वो वहां अम्मा को अस्पताल से छुट्टी दिलाने के बाद की औपचारिकताएं पूरी कर रहे हैं, अब देखो वो मेरी ओर ही आ रहे हैं,,, "
पापा जी आये, उनके चेहरे पर तैरते भाव इस बात की गवाही दे रहे थे कि अम्मा के ठीक हो कर घर जाने से उन्हें काफी राहत महसूस हो रही थी। वरना पेट में ट्यूमर, ऑपरेशन, बोतल दर बोतल खून और प्राइवेट वार्ड नंबर एक में लेट कर कराहती अम्मा, इन सबने बीते दिनों में बदल कर रख दिया था पापा जी को।
"चलें?" पापा जी ने मुझ से पूछा। मैं कुछ बोलता इस से पहले ही नौ साल की अंगुलियाँ उनकी मुठ्ठी में जा छिपी थीं। पापा जी सीढ़ियों की तरफ नहीं गए। अचानक मुझे उनके चेहरे पर कुछ उबाल सा दिखा और हम उस प्राइवेट वार्ड नंबर एक की तरफ चल पड़े  जहाँ बीते दिनों तक हमारे बोझिल क़दम जाते थे और जहाँ से अम्मा को ठीक होने के बाद बाहर लाते समय शायद हर किसी ने मन ही मन दोबारा वहाँ न आने की प्रार्थना की थी।
मोबाईल फिर सक्रिय हुआ। गुस्सा आया कि रेनू से चिल्ला कर कहूं कि "जानती नहीं पापा जी के साथ हूँ,,,? आता हूँ अभी,,," लेकिन छब्बीस साल का हाथ मोबाईल तक नहीं गया क्योंकि नौ साल वाला हाथ पापा जी की मुट्ठी में क़ैद है।
हम दोनों प्राइवेट वार्ड नंबर एक के बंद  दरवाज़े पर खड़े हैं। भीतर सन्नाटा है। ट्यूमर की चर्चा,ऑपरेशन का दर्द, दवाईयों की तीखी गंध और अम्मा का बीमार चेहरा, कुछ् भी नहीं है अब वहां पर। खाली वार्ड में कुछ सामान  भरा हुआ है,, वह पलंग भी खाली है जिस पर अम्मा के दर्द को चादर की सिलवट सा महसूस करते थे हम सब। मैं कुछ कहना चाहता था लेकिन पापा जी एकदम चुप हैं। एकटक उस कमरे के भीतर देख रहे हैं। मैंने कमरे के भीतर हर चीज पर उनकी फिसलती निगाहों की परछाई देखी, महसूस किया कि हर चीज उनकी निगाहों से बिधि जा रही है और यह भी कि मेरे हाथ पर उनकी पकड़ बढ़ती जा रही है। काफी देर तक ऐसा ही रहा। अचानक पापा जी पलटे, यह क्या,,,,? ये तो वही पुराने पापा जी हैं, अम्मा को भरती  कराते समय के चिंतातुर चेहरे वाले, ऑपरेशन  रूम के बाहर ईश्वर को याद कर बार-बार आँखे मूँद लेने वाले, अम्मा को चढ़ती खून की बोतलों को भयभीत  निगाहों से देखने वाले पापा जी फिर दिखने लगे थे। उनको ये अचानक क्या हो गया है? यहाँ आने से पहले उनके चेहरे पर आया उबाल बेकाबू नज़र आ रहा है।
छब्बीस साल के "मुझ " का मोबाईल फिर सक्रिय हो उठा, लेकिन मैं नौ साल के "मुझ" के पास हूँ,,पापा जी का हाथ पकडे हुए, वे नाउम्मीदी के साथ प्राइवेट वार्ड नंबर एक के बंद दरवाज़े पर से आँखें हटा रहे हैं। निराशा ऐसी मानो कोई खोज, कोई  बहुत बड़ी खोज की कोशिश नाकाम हो गयी हो।
"पापा जी, अम्मा को बहुत बड़ा ट्यूमर था ना?"
"तुम्हें कैसे पता चला?
"ऑपरेशन रूम में देखा था।।अम्मा को वहाँ से बाहर लाये तो सिस्टर अपने साथ मुझे अन्दर ले गयी और वहाँ की वाश बेसिन पर रखा खून से सना गोला दिखा कर मुझसे बताया था कि वो निकला है अम्मा के पेट से।"
"बहुत बड़ा था न वो,,,?" पापा जी ऐसे बोल रहे हैं जैसे उन्होंने कुछ देखा ही नहीं। अब हम चुपचाप स्कूटर की तरफ आ रहे हैं। पापा जी अचानक फिर से रुक गए हैं,, वो मुझ से कुछ कह रहे हैं। इधर मोबाइल में फिर हलचल हो रही है। लेकिन  मैं पापा जी को ही सुन रहा हूँ
क्या सुन रहा हूँ मैं,,,,,?
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मैं वार्ड के सामने हूँ। छब्बीस साल वाला हाथ उसके बंद दरवाज़े को छू रहा है। भीतर जाने की हिम्मत नहीं है, लेकिन मैं वहाँ जाता हूँ। क्या यह वोही पलंग है? क्या वोही खून और ग्लूकोस की बोतलों का स्टैंड है? क्या ये वोही दीवारें हैं जो अम्मा की कराहों सी कई दिनों तक गूंजती रही थीं?मेरे पास किसी भी बात का जवाब नहीं था।।।मैंने इन सभी का स्पर्श किया और वहाँ से बाहर आ गया। अरे, पापा जी कहाँ चले गए? क्या कह रही थी रेनू कि पापा जी को ले जाने का समय हो गया है!!!!!!
पापा जी अचानक फिर दिखे। मैं उन्हें चलने के लिए बुलाना चाहता हूँ लेकिन वो ऑपरेशन  रूम के भीतर चले गए। भीतर इतनी शांति है कि पापाजी भी नज़र नहीं आ रहे हैं, मैं ऑपरेशन  रूम के वाश बेसिन के पास जाता हूँ। अरे! यहीं तो था वोह ट्यूमर! कहाँ चला गया,,,? वहाँ ट्यूमर नहीं है।।।कहीं भी नहीं। उसकी तलाश में वाश बेसिन पर चली मेरी अंगुलियाँ पानी का गीलापन लिए लौट आती हैं
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पापा जी की अर्थी को मैंने हाथ नहीं लगाया। हर शै से मैं अपना हाथ बचाते हुए चल रहा हूँ। वे शांत चिता पर लेटे  हुए हैं और मैं अशांत खड़ा हुआ हूँ। चिता जली तो मेरा हाथ उसकी लपट की तरफ बढ़ा। बढ़ते -बढ़ते उसने नौ से छब्बीस साल तक के सफ़र की थकान महसूस की। अग्नि के करीब आते ही हथेली पर हलचल होती है। वाश बेसिन का गीलापन आग से मिलकर चिता तक उतरता और वहां से पापा जी तक जाता महसूस होता है। मैं चुपचाप वहाँ से चला आया। पापा जी की आत्मा की शांति के लिए हुई सभा में भी शामिल नहीं हुआ। मेरा मानना है कि अब उन्हें ऐसी किसी दुआ की ज़रुरत भी नहीं है। क्या आज भी नौ साल का मैं पापाजी के साथ स्कूटर के पास खडा हुआ हूँ और सुन रहा हूँ  उनको मुझसे ये कहते हुए कि "तेरी माँ का इलाज तो कराया, मगर उसके दर्द का भागी नहीं बन सका मैं,,,बहुत तड़पी है वो और हम दवा, डॉक्टर, इसी सब में उलझे रहे थे।।।उसका दर्द क्यों नहीं साझा कर सका मैं!!!!!!"
अचानक मेरी आँख भर आयी और आंसू बेसाख्ता बह निकले।