सोमवार, अप्रैल 04, 2011

hotee hai

भाई वीनस केशरी की प्रेरणा से

उधर की आह यहाँ के इश्क से बयाँ होती है
ये तो तिज़राते-इश्क है जो यूं ही जवां होती है

तू ना सोच के तेरे दर्द से बावस्ता नहीं हूँ मैं
तिरी हर शब् मेरी सिलवटो से बयाँ होती है

ये कोई खुदायी नहीं, चाह है इक उम्मीद की
जो हो जाती तो है पर मुक़म्मल कहाँ होती है

मुझसे सुनो यारों तन्हाई की ये दास्ताँ मिरी
जो साथ हो के भी मेरी हमसफ़र कहाँ होती है

वो जो कहलायें पयम्बर या कोई दरवेश
किसी ना किसी हिज्र पर उनकी भी जुबां सोती है

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