सोमवार, जून 20, 2011

इक और पेशकश

पता नहीं ये क्यों लिखा है...किस मूड में लिखा है...बस इतना तय है कि लिखने से पहले जितनी बैचैनी थी...लिखने के बाद वोह और बढ़ गयी है


दिल जैसे कि गजाला कोई खेत में
चश्म जैसे कि चिराग कोई पानी में

लब जैसे कि आलिंगन कलियों का
दहन जैसे कि अप्सरा कहानी में

ज़ुल्फ़ जैसे कि वस्ले आब-ओ-घटा
चाल जैसे कि समंदर रवानी में

तसव्वुर जैसे कि इबादत करी जाये
बस यही कुछ तो हासिल है जवानी में

1 टिप्पणी:

  1. ज़ुल्फ़ जैसे कि वस्ले आब-ओ-घटा
    चाल जैसे कि समंदर रवानी में

    तसव्वुर जैसे कि इबादत करी जाये
    बस यही कुछ तो हासिल है जवानी में

    ye dono mujhe sabse zyada pasand aaye..

    achchhi misaalein di hain aapne..

    :)

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