रविवार, जुलाई 15, 2012

kai dinon ke baad......

वो जो तेरे भरोसे पे जहान छोड़ आये हैं
महशर में अपना ही  नाम जोड़ आये हैं

हकीकत में है दुश्वार दो जून की रोटी भी
खयालों में तो आशिक  तारे भी तोड़ लाये हैं

खुशियों की दौलत तो बस है बवाले-जान
अब तो हम गम से ही नाता  जोड़ आये हैं

अपनों की ही बज़्म में परायों से दिखे हम 
मौजूदा बुरे वक़्त में ऐसे भी मोड़ आये हैं

अब क्या रोना तेरी कज अदाई का ए दोस्त
हाँ हम अब  रकीबों में तिरा नाम जोड़ आये हैं

2 टिप्‍पणियां:

  1. बेनामी7/16/2012 1:13 am

    हकीकत में है दुश्वार दो जून की रोटी भी
    खयालों में तो आशिक तारे भी तोड़ लाये हैं ...

    वाह ! यूँ तो पूरी ग़ज़ल ही सुंदर है, लेकिन यह पंक्तिया ख़ास तौर पर बहुत अच्छी लगी ... व्यंग्यात्मक शैली में कही गयी बात बहुत प्रभावशाली बन पड़ी है...
    सादर
    मंजु

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  2. वाह ....
    बहुत खूब गज़ल...
    अपनों की ही बज़्म में परायों से दिखे हम
    मौजूदा बुरे वक़्त में ऐसे भी मोड़ आये हैं
    लाजवाब शेर.

    अनु

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