गुरुवार, फ़रवरी 21, 2013

नींद की तलाश में


जैसे ही शबाब पर आया अँधेरे का गाढ़ापन 
जागा हुआ कोई जिस्म काँप उठा 
तुरंत छिपाया तकिया 
अलमारी में क़ैद कर दिए कागज़ 
गद्दे के नीचे छिपा दिया चिकना कागज़ 
धो दिया पूरा चेहरा 
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वो शबाब था, सुबह के आने का निशान 
तकिया भीगा हुआ था आंसुओं से 
कागज़ में थे "किसी" को न भेजे ख़त 
चिकना कागज़ था, किसी "ख़ास" की तस्वीर 
पूरा चेहरा था, अश्कों की नमी में लिपटा 
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फिर, ओढ़ कर नाकामियों की चादर 
बना कर खामोश जज्बों का तकिया 
कील सी चुभने वाली यादों की सेज पर 
कोई लेट गया, नींद की तलाश में 



रत्नाकर त्रिपाठी 

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