मंगलवार, अक्तूबर 30, 2012

mere desh ka sandy

अमेरिका के सैंडी प्रभावितों के लिए मेरे पूरी सहानुभूति है, ईश्वर न करे लेकिन यदि ऐसा कुछ वाकिया हिंदुस्तान में होता तो क्या प्रतिक्रिया होती  इस की मैंने कल्पना की है 
- नेता जी टीवी पर आँखें गडाए हुए गुदगुदाते चेहरे के साथ मशगूल थे, अचानक रंग में भंग हुआ और उनका निज सचिव हाज़िर था। 
"बोलो " उकताए स्वर में नेता जी बोले,
 "सर माफी चाहता हूँ लेकिन एक ज़रूरी सूचना देनी थी" निज सचिव डरते हुए बोला, 
"ज़रूरी सूचना" नेता जी सजग हो गए और सौम्य भी "अरे भाई! ज़रूरी बात है तो डर  क्यों रहे हो, बोलो,,,,,,,,," 
"सर, वो सैंडी आने वाला है " 
"सैंडी! ये कौन सा ठेकेदार है और इसका कौन सा प्रोजेक्ट हमने अटका कर रखा है?" नेताजी के स्वर की उत्सुकता बढ़ गयी।
 "सर, वो ठेकेदार नहीं बल्कि तूफ़ान है, बेहद खतरनाक है "
अफसर ने "खतरनाक " शब्द का जानबूझकर इस्तेमाल किया था ताकि नेता को डिस्टर्ब करने का सही हक जता  सके, लेकिन लगता था कि बात नहीं बनी। नेताजी का चेहरा बुझ गया, उन्होंने अफसर को घूरा और फिर टीवी पर नज़र लगाई। वहाँ नेताजी की पसंदीदा श्रेणी की , मानव शरीर की संरचना तथा उसके रोचक प्रयोग, की जानकारी देने वाली डीवीडी चल रही थी। इस शिक्षाप्रद आनंद को तो कोई मालदार ठेकेदार ही भंग कर सकता था, तूफ़ान की ऐसी औकात भला हो सकती थी! लेकिन करेला और नीम चढ़ा की तर्ज़ पर नादान और उस पर पढ़ा-लिखा अफसर इस शाश्वत सत्य से अनजान था। वो सिर  झुका कर खड़ा हो गया
"तूफ़ान हमारे यहाँ आ रहा है?" नेताजी ने कुछ देर बाद  ऐसी बेरुखी के साथ पूछा जैसे अफसर से पूछ रहे हों कि "देश ठीक चल रहा है?"
"जी सर, बिलकुल हमारे यहाँ ही आ रहा है" अफसर के स्वर में आशा का संचार होने लगा वो उत्साह से चहकने के अंदाज़ में बोला "वो आएगा तो समुद्र में भयानक हलचल मचेगी, किनारे तक तबाही मच जायेगी और,,,,,,,,,,,,,,,,,"
अचानक उसके उत्साह पर नेताजी की घूरती निगाहो ने ने ब्रेक लगा दिया "अबे बेवकूफ ये हमारे यहाँ समुद्र कहाँ से आ गया?"
"हैं न सर, केरल, मुंबई, तमिलनाडु, गोवा और ऐसी कई जगहों पर हमारे देश में समुद्र है" अफसर कुछ घिघियाते हुए बोला और नेताजी के भाव को भांप कर अगली गाली खाने की मुद्रा में तत्पर नज़र आने लगा 
"तुम साले मूर्ख ही रहोगे,,,अबे हमारे यहाँ से हमारा मतलब हमारे संसदीय क्षेत्र से था, ये केरल-वेरल क्या लगा रखा है?"
"आप केंद्र में मंत्री हैं,,,,,,," अफसर ने नेताजी की याददाश्त दुरुस्त करने की ड्यूटी पूरी करने की गरज से कहा " मैंने सोचा,,,,"
नेताजी अफसर की मूर्खता पर मंद-मंद मुस्कुराते हुए टीवी को मुग्ध भाव से देखने में दोबारा तल्लीन हो गए,,,,,फिर कुछ सोच कर बोले "ये साला सैंडी कब तक आएगा?"
"सर, आज की रात "
"हूँ,,,,,,,ये दिल्ली में समुद्र है क्या? " नेताजी पहली बार कुछ चिंतित नज़र आये 
"नहीं सर " अफसर राहत देने के अंदाज़ में बोला,,,"यहाँ सैंडी नहीं आ सकता "
"और ससुरा समुद्र तो हमारे संसदीय क्षेत्र से कोसों दूर तक भी नहीं है,,,," नेता जी भारी राहत के अंदाज़ में बोले और उन्होंने दीवार पर लगी अपने अराध्य की फोटो को नमन कर लिया, पूरी श्रद्धा के साथ। अब वे सुरक्षा के बोध से आत्मविश्वास से भरे नज़र आ रहे थे। 
अफसर ने मौके का लाभ उठाने की गरज से कहा "हम भी आप के इलाके के ही हैं सर, वहाँ सैंडी आता तो बड़ी तबाही मच जाती,,,,,,,"
"हाँ भैया! न जाने हमारे कितने मतदाता कम कर जाता साला ये तूफ़ान,,,हम तो बर्बाद हो जाते " नेताजी क्षणिक तौर पर गंभीर हो गए। लेकिन वे इतने भी गंभीर नहीं थे कि अफसर को डीवीडी प्लेयर को पॉज मोड पर करने की ज़रुरत महसूस होती। वो नेताजी का अतीत जानता था। नेताजी का जीवन तूफानों से संघर्ष में ही गुज़रा था।, युवावस्था में वो कई हमउम्र लड़कियों के भाई  तथा पिता द्वारा उठाये गए तूफ़ान का सफलतापूर्वक मुकाबला कर चुके थे, पैसे कमाने के संघर्ष में वे चोरी से ले कर उठाईगिरी और ठेके पर हत्या जैसे हथकंडों के सम्मान की खातिर पुलिस के तूफानों का कामयाबी के साथ सामना कर चुके थे, राजनीति में आज का मुकाम हासिल करने के लिए वे अपनी अंतरात्मा से उठते सच्चाई तथा नैतिक और चारित्रिक मूल्यों के तूफ़ान को कुचल चुके थे, अब क्या ऐसा संघर्षशील व्यक्तित्व सैंडी से घबराता? वो भी तब जब न दिल्ली में समुद्र था और न ही नेता के संसदीय क्षेत्र में।  
"अब क्या करें सर,,,,,?" अफसर आत्मविश्वास से भरा बोलता गया "फिलहाल बचाव के उपाय कर लें? भारी नुकसान होना  तो  तय है"
"हूँ,,,,,," नेताजी गंभीर हो गए "ये समुद्र कहाँ-कहाँ बताये थे तुमने?"
अफसर ने नाम गिना दिए और एक ही सांस में ये काम पूरा करने के बाद इस तसल्ली के साथ खड़ा हो गया कि देश में पर्याप्त जगह समुद्र हैं। 
"बस, इतने से समुद्र! कुछ बढाओ भाई, ऐसे कैसे चलेगा।" नेताजी निराश नज़र आने लगे थे
अफसर इस निराशा की प्रत्याशा में और उसे आशा में बदलने के लिए तैयार था, बोला "इतने बहुत हैं सर, मैंने कहा न खतरनाक तूफ़ान है, भयानक तबाही लायेगा  "
"चलो तू कहता है तो मान लेता हूँ,,,,," नेताजी के स्वर में नैराश्य पूरी तरह नहीं कम हो रहा था, फिर भी वे जैसे खुद को आश्वस्त करने में लगे हुए थे 
"चलो, अपने वाले अफसरों की टीम बनाओ, आज ही रात सब को इन जगहों पर भेज दो, अभी से आंकड़े थमा दो कि कितनी क्षति हुई और कितने मरे,,,,,," नेताजी बेहद अभ्यस्त अंदाज़ में किसी माहिर क्षतिबाज़ की तरह बोलते चले जा रहे थे - ",,,,,,,राहत राशि के लिए बड़े देशों और संगठनो को जो पत्र  लिखो, उसमे भले ही  प्रभावित जगहों की आबादी से ज्यादा की मौत बता दो लेकिन संसद में उत्तर देने और अखबारों में बयान देने के लिए मौत का आंकड़ा बेहद कम हो,,,,किसी सड़क दुर्घटना जितना,,,,," नेताजी का हुनर देख मन्त्र मुग्ध था अफसर। नेताजी बोले " विदेश और बड़े संगठनों से मिली मदद का काम तुम देखोगे, तुम हमारा ध्यान रखना और हम तुम्हारा,,,,,," यह कहते-कहते नेताजी के चेहरे पर भाईचारे का ऐसा भाव आ चुका  था जो महात्मा गाँधी शीर्षासन जितनी मेहनत / प्रयास करने के बाद भी इस देश में नहीं ला सकते थे। 
अचानक नेताजी के चेहरे पर प्रश्नवाचक चिन्ह आ गया, अफसर से गंभीर होकर बोले "तुम्हारी बिटिया की शादी कब है?" 
"छः महीने  बाद सर "
"हूँ,,,, तब तक तो अधिकतर राहत राशि आ ही चुकी होगी " नेता ने कहा और इसके साथ थी उसके और अफसर के चेहरे पर आश्वासन नज़र आने लगा, , उसी आश्वस्त अंदाज़ में नेता ने बोला "तब तक हमारी पत्नी भी यूरोप यात्रा में काम आने लायक इंग्लिश सीख चुकी होंगी, अब वहां जाएंगी तो शौपिंग भी तो करनी होगी न, तब इंग्लिश काम आ जायेगी"
"और सर, प्रभावित इलाकों में क्या बाटेंगे?" अफसर यूं उपेक्षित अंदाज़ में बोला जैसे किसी शाही भोज की योजना के अंत में सबसे गैर ज़रूरी सवाल के तौर पर पूछ रहा हो कि "भिखारियों को बचा हुआ खाना देना है क्या, वरना खाना सड़ जायेगा"
"छः महीने के बाद जो राहत की रकम आये उसमें से हमारा और तुम्हारा जेब खर्च निकल कर बाकी उन इलाकों में बाँट देना। वो बेचारे तुम्हारी बेटी के सुखमय वैवाहिक जीवन और हमारी पत्नी की सुखद यूरोप यात्रा के लिए दुआएं देंगे,,,,,,,,," नेता जी अपनी पेशागत मूल छवि से सर्वथा अलग किसी वास्तविक परोपकारी की तरह दिख रहे थे। 
अफसर वहाँ से निकलने को ही था कि अचानक नेताजी के स्वर में उसे गुर्राहट और नैराश्य का मिला-जुला अहसास हुआ। अनुभव के पके अफसर ने बिना किसी क्लू की ज़रुरत महसूस किये बगैर टीवी की तरफ  देखा।  वहां डीवीडी अटक गयी थी। अफसर जान गया कि साला सैंडी से भले ही कोई बच जाए लेकिन ऐसी  डीवीडी देने वाले को तो अब साक्षात् भगवान् भी नहीं बचा सकता है 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें