शुक्रवार, मई 10, 2013

मैंने कल्पना की है

 मैंने कल्पना की है 





विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने स्वीकार किया है कि  चीन यात्रा के दौरान उन्होंने चीनी फ़ौज द्वारा हमारे देश की ज़मीन पर  कब्ज़े के बारे में कोइ बात नहीं की। ऐसे में मैंने इस व्यंग्य के ज़रिये कल्पना की है कि  खुर्शीद ने चीन में किसी नेता के साथ आखिर क्या बातचीत की होगी............
 
चीनी- क्या हाल हैं? आज सूरज किधर से निकल आया! 
खुर्शीद- सब आपकी दुआएं हैं। बस कई दिनों से आना नहीं हो पाया। जब भी निकलने का सोचो, एक न एक झंझट आ जाता था। 
ची- चलो, कुछ दिन तो रुकोगे ना। भाभी को नहीं लाये? ले आते उनको भी। कम से कम घूम ही लेते यहाँ पर। ग्रेट वाल ऑफ़ चाइना वगैरह देख लेते तुम लोग। खैर, भाभी का वो NO GOODWILL ORGANISATION कैसा चल रहा है? 
खु- आपका मतलब एनजीओ? जी दुआएं हैं। बेगम आ तो जातीं लेकिन उन्हें "वाल" का फोबिया हो गया है। फिर चाहे चीन की वाल हो या फिर केजरीवाल। इसलिए नहीं आयीं। 
ची- ये केजरीवाल कौन है? 
खु- लम्पट है एक नंबर का। पता नहीं कहाँ का है,  लेकिन कसम से कह रहा हूँ कि  सूरत से तो वो  तिब्बत का रहने वाला दिखता है और इंग्लिश बोलता है तो लगता है कि  उसका अमेरिका से कोई सम्बन्ध है। खैर हमें क्या.....
ची- फिर तो ये बड़ा ही खतरनाक आदमी है। कुछ इलाज करना पड़ेगा इसका। ऐसे आदमी की तो जमकर पिटाई होनी चाहिए। 
खु- नहीं! हम अहिंसावादी हैं। 
ची- उसे डंडों से धुन देना चाहिए। 
खु- अरे नहीं! हम शांतिप्रिय हैं। 
ची- उसके हाथ-पाँव तोड़ डालने चाहियें। 
खु- छोडो, आप भी विषय से भटक रहे हो। ये सब सुनने से तो बेहतर है कि  मैं गांधी जी का कान पर हाथ रखा बन्दर बन जाऊं। हाँ, हाथ-पाँव तोड़ने वाली बात से याद आया कि  आपकी भाभी का एनजीओ विकलांगों की सेवा करता है। कुछ ज़रुरत हो तो याद कीजियेगा, बाकी तो आप समझदार हैं। 
ची- हूं..........
खु- जनसेवा का काम करता है हमारा एनजीओ, पूरे हिंदुस्तान में नाम चलता है उसका..........
ची- हूं..........
खु- हमारा संगठन विकलांगों को उपकरण बांटता है..........
ची- हूं..........
खु- हमारे खिलाफ किसी ने दुष्प्रचार किया था, झूठ था वो सब..........
ची- हूं..........
खु- आपकी बहु ने ख़ास आपके लिए आम का अचार, पापड, चिप्स, भेजे हैं। सब अपने हाथ से बनाया है उसने..........
ची (इस तरह अंगडाई लेते हुए मानो किसी महा मौनव्रत को समाप्त करने की घोषणा की जा रही हो) अरे! बहु को क्यों परेशान किया? 
खु- परेशानी वाली क्या बात है! आपकी बहु तो हमारे देश के एक राजनीतिक दल "आप" का अचार बनाना चाह रही थी। हम दोनों इसी मशक्कत में लगे हुए थे। बात नहीं बनी तो मैंने उस से कहा कि  "आम" को ही "आप" समझ ले और बना दे अचार। 
 ची- अब उसका अचार हम बना देंगे। बहु से कहो टेंशन मत ले। 
खु- जी। अब क्या बोलूँ! मैं तो गांधी जी का कान पर हाथ रखा बन्दर बन गया हूँ। 
ची- और कुछ ख़ास? 
खु- बस और कुछ नहीं, यहाँ आ गया, आपके दर्शन हो गए, बस और क्या चाहिए? 
ची- वो हमारे कुछ सैनिक गलती से तुम्हारे यहाँ आ गए थे, दरअसल हुआ ये था कि ..........
खु- अजी छोडिये! अब बच्चे हैं, घूमते-फिरते भटकते हुए आ गए होंगे। बल्कि मुझे तो ये बुरा लगा कि  बच्चे हमारे यहाँ तक आये और मैं उन्हें चाय के लिए भी नहीं पूछ सका। 
ची- चलता है। बच्चे भी बिजी थे। जल्दी ही लौट आये। 
खु- अब आपके बच्चे तो मेरे तो भतीजे ही हुए ना! हाँ समझ सकता हूँ, भतीजे बिजी थे, तब ही तो 1962 के बाद अब समय निकाल पाए "चाचा" के देश में आने का। 
ची- अरे हाँ! वो भी तो "चाचा" ही थे ना!! और आप भी! वाह!! क्या संयोग है। 
खु- आखिर अतिथि सत्कार हमारी परंपरा है। भतीजों से कहिये, कभी भी आ सकते हैं, हर बार एक न एक चाचा उनकी अगवानी के लिए मौजूद रहेगा। 
ची- इसी बात पर हो जाए एक-एक प्लेट हाका नूडल्स। 
खु- क्यों नहीं! हां, बस वो "अचार  बनाने वाली" बात मत भूलियेगा।
ची- नहीं भूलेंगे, बहु से कहो टेंशन मत ले। 
खु- मगर ध्यान से हम अहिंसावादी हैं, शांतिप्रिय हैं और..........हाँ! LAST  BUT  NOT  THE LEAST  कि  हमारा एनजीओ भी है..............................हाय री मजबूरी! मेरे सिद्धांतों और आदर्शों पर क्यों हावी हो रही है तू??????????????????????

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