बुधवार, जून 18, 2014


 
 
 
तारे भी उनके अश्कों से अपना चेहरा धोते हैं
वो जो डूब के इश्क में तमाम शब् को रोते हैं

आस का बस एक ही दाना, है उनकी उम्मीदों में
वो जो अपने हर आंसू में नाम  तेरा ही  बोते हैं

जिनके ख्वाबों की मंज़िल है तेरे आँचल का साया
अंगारों की सेज  पे भी वो पुर-सुकून हो  सोते हैं

ज़ख्मों को अपने जिनके नाम किया है लोगों ने
पूछ रहे हैं वो मुझसे, ये नश्तर कैसे होते हैं?

है ग़ज़ब वो तिश्नगी यारों के दरिया पे आ के भी
वो आंसूं-आंसू पीते हैं और फिर ज़ख्मों को धोते  हैं


रत्नाकर त्रिपाठी 

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