मंगलवार, जून 24, 2014




ज़रा गौर से सुनो, ये   सन्नाटा कुछ कहेगा
मेरी सोहबत में आके चुप कैसे कोई रहेगा

कमाल का असर है कि  बुत  भी साथ हो तो
पत्थर को दिल पे रखके मेरा हाल वो सहेगा

सहरा में मैं गया तो यक़ीन मान लो तुम
दरिया-दरिया उसके हर ज़र्रे से बहेगा

तन्हाई भी कभी  मुझसे जो आ मिली तो
महफ़िल की ओर ही फिर उसका कदम बढ़ेगा

तारीफ खुद की ऐसी वाज़िब नहीं है लेकिन
मेरा ये सच ज़माना कई दौर तक कहेगा

2 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ संध्या भाई रत्नाकर जी
    सत्य कहा आपने
    मेरा ये सच
    ज़माना
    कई दौर तक कहेगा

    सादर

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    1. आपकी टिप्पणी मेरे लिए बेशकीमती है, बहुत धन्यवाद।

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