पहली बार इस शैली की कविता लिख रहा हूँ, शायद किसी को पसंद आ जाए
गरमी की छुट्टी की
वोह दोपहर याद है रेनू ?
जब लिए रिजल्ट हम
साथ लौट रहे थे घर को
स्कार्फ और फ्रोक में तुम
और निक्कर-कमीज़ में था मैं
तुम्हारे पास से आती तेल और पावडर की खुशबू
कितना अपना और पहचाना सा था सब कुछ
फिर सफ़र हुआ ख़तम
हम अपने-अपने घर को चल पड़े
फिर,
अपना-अपना नया स्कूल
अपना-अपना कोर्स
अपना-अपना दायरा
अपना-अपना भविष्य
फिर,
अपना-अपना कोई और................................
यकीन मानो, वोह निक्कर-कमीज़ वाला 'मैं'
आज भी सफ़र के खात्मे पर खड़ा हूँ
गरमी की छुट्टी की
वोह दोपहर याद है रेनू ?
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