गुरुवार, सितंबर 09, 2010

मुक़म्मिल होने को है

हालात की सुई से आंसुओं के रेशे पिरो चुका हूँ
यूं यादों की चादर अब मुक़म्मिल होने को है

आंसुओं की नमी में घोल दिए हैं तमाम ख्वाब
यूं अपनी हरेक शब् अब तनहा होने को है

लिपट के अँधेरे से मिटा दिया है अपने साये को
यूं तुझसे मेरा फासला अब कम होने को है

दुनिया उक़बा दैरो-हरम सारे नज़र से उतर गए
यूं अब पाक इबादत की इब्तिदा होने को है

हम तो बाम से फ़क़त तुझे देख खुश हो लिए हैं
यूं अब मेरी ईद मुबारक की सहर होने को है

9 टिप्‍पणियां:

  1. हम तो बाम से फ़क़त तुझे देख खुश हो लिए हैं
    यूं अब मेरी ईद मुबारक की सहर होने को है
    bahut khoob ....

    दुनिया उक़बा दैरो-हरम सारे नज़र से उतर गए
    यूं अब पाक इबादत की इब्तिदा होने को है
    lazwab rachna

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  2. लिपट के अँधेरे से मिटा दिया है अपने साये को
    यूं तुझसे मेरा फासला अब कम होने को है
    बहुत ही कोमल अहसास ....इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई ...

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  3. यूं यादों की चादर अब मुक़म्मिल होने को है...
    यादों की चादर कभी मुकम्मिल होने न देना
    जिन्दगी में सफर में हो जाएगा अकेला वर्ना .....

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  4. Bade aasaan Nazar aate hai app...
    Uff ke Kahar Dhaate Hai aap...

    Mubaarakbaad ...

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  5. I Appreciate your lovely post, happy blogging!!!

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  6. Aap ki likhi andaj gahari hai. wakt nikal kar dekha karta hu. us ukere kam or klam ke madham se likh deye pr is blog ke sahare hum aap ko jan liye.
    thanks

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  7. मुझे हमेशा आपकी गजले बहुत अच्छी लगती है.आपके ब्लॉग में फोल्लोवर आप्शन नहीं है वर्ना मैं फोल्लो कर के जान लिया करती जब भी आपकी कोई नयी पोस्ट पड़ती तो.

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