शुक्रवार, मई 14, 2010

आखिर क्यूँ ??????

कुछ लिखा है, कृपया गौर फरमाइए





अक्सर करता हूँ अफ़सोस कि
तकदीर ने इंतज़ार के तमाम लम्हात
मेरे लिए तुझसे ही क्यों जोड़ दिए
कि
हिजाब के तेरे हर एक फैसले
मेरे हिस्से आने को ही छोड़ दिए

कि
माजी के तमाम दर्दनाक हिज्र
मेरे अफ़साने से ही जोड़ दिए

कि

नज़्द से उठते हर एक गुबार

मेरे मयक़दे को ही मोड़ दिए

कि

तेरे दर तक ले जा पाते जो
वोह ही सारे इशारे तोड़ दिए

कि

संग फेकने उठे तमाम हाथ
मेरी ही सिम्त यूं मोड़ दिए

कि

अब जब भूल गया था सब

क्यूं माजी से तार जोड़ दिए

अक्सर करता हूँ अफ़सोस कि
किस वादे पे यूं दुनिया छोड़ गए

3 टिप्‍पणियां:

  1. कि

    तेरे दर तक ले जा पाते जो
    वोह ही सारे इशारे तोड़ दिए

    कि

    संग फेकने उठे तमाम हाथ
    मेरी ही सिम्त यूं मोड़ दिए


    वाह क्या बात है
    आप बढ़िया लिखते/लिखती हैं :)

    अरे अपना प्रोफाईल तो लगाईये
    पता चले कुछ आपके बारे में हमें भी

    प्रतिक्रया के इंतज़ार में - वीनस केशरी

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  2. तेरे दर तक ले जा पाते जो
    वोह ही सारे इशारे तोड़ दिए

    कि

    संग फेकने उठे तमाम हाथ
    मेरी ही सिम्त यूं मोड़ दिए


    इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....

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  3. abhi kam wakt ke karan kuch rachnaye dekh paya hoon..
    chalta hoon fir aunga..

    dhanywaad
    sanjay bhaskar

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