शुक्रवार, मई 28, 2010

हम से न अब इस दिल का हाल पूछिए

तमाम ज़ख्मों पे न कोई सवाल पूछिए

सजा रखी थी खुशनुमा चेहरों की जो नुमाइश
क्यों उठ गयी उससे, नकाब न पूछिए

माजी को भूल कर जब फिर किया यकीन
मिला क्यों आशना खंजर, अब ये न पूछिए

वो जो हैं शब् भर महफिलों की जां
बिस्तरों की सिलवटों से उनका हाल पूछिए

मोम सा दिल, है पिघलता जिनके अन्दर
क्यों दिखाएँ संग बन के, उन से ही पूछिए
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अर्थ- नुमाइश- प्रदर्शनी
माजी- अतीत, बीता हुआ कल
आशना- पहचाना हुआ
संग- पत्थर

1 टिप्पणी:

  1. माजी को भूल कर जब फिर किया यकीन
    मिला क्यों आशना खंजर, अब ये न पूछिए

    बहुत खूब

    अपना एक मत्ला याद आ गया

    मुस्कुरा कर जब गले दिलबर मिले
    चीर कर सीने को फिर खंज़र मिले

    अरे साहब फालोवर तो लगाईये ही लगाईये

    ८ बजे की पोस्ट १२ बजे पढ़ रहे हैं
    वो भी आपने कहा था इसलिए चले आये देखने

    जवाब देंहटाएं