सोमवार, मई 31, 2010

येह ज़िन्दगी

अपनी एक ताज़ा रचना पेश कर रहा हूँ

ज़ख्म-दर-ज़ख्म, फिर आस-दर-आस
किस कदर है
मायनेखेज़ येह ज़िन्दगी

धूप तक ही है मिलन, ओस का गुलों से
किस कदर है
मुख़्तसर येह ज़िन्दगी

जल-जल के जीता सूरज, आवारा फिरे चाँद
किस कदर है
बेकरार येह ज़िन्दगी

हीर भी थी उसकी, राँझा भी था उसी का
किस क़दर है
लाचार येह ज़िन्दगी

याद दिला तेरी , उधार दे दी चंद साँसें
किस कदर है
साहूकार येह ज़िन्दगी

तुझ से की जो ख्वाहिश, गुनाह नहीं है
किस कदर है
तलबगार येह ज़िन्दगी।

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अर्थ
मायनेखेज़- अर्थपूर्ण
मुख़्तसर- छोटी

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब..बेहतरीन रचना!

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  2. गहरे भाव - अच्छी रचना।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  3. सुन्दर भावों को बखूबी शब्द जिस खूबसूरती से तराशा है। काबिले तारीफ है।

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