अपनी एक ताज़ा रचना पेश कर रहा हूँ
ज़ख्म-दर-ज़ख्म, फिर आस-दर-आस
किस कदर है
मायनेखेज़ येह ज़िन्दगी
धूप तक ही है मिलन, ओस का गुलों से
किस कदर है
मुख़्तसर येह ज़िन्दगी
जल-जल के जीता सूरज, आवारा फिरे चाँद
किस कदर है
बेकरार येह ज़िन्दगी
हीर भी थी उसकी, राँझा भी था उसी का
किस क़दर है
लाचार येह ज़िन्दगी
याद दिला तेरी , उधार दे दी चंद साँसें
किस कदर है
साहूकार येह ज़िन्दगी
तुझ से की जो ख्वाहिश, गुनाह नहीं है
किस कदर है
तलबगार येह ज़िन्दगी।
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अर्थ
मायनेखेज़- अर्थपूर्ण
मुख़्तसर- छोटी
बहुत खूब..बेहतरीन रचना!
जवाब देंहटाएंगहरे भाव - अच्छी रचना।
जवाब देंहटाएंसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
waah sundar rachna
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावों को बखूबी शब्द जिस खूबसूरती से तराशा है। काबिले तारीफ है।
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