गुरुवार, अगस्त 05, 2010

क्योंकि मेरी जां....

अलग अंदाज़ में कुछ पेश करने की कोशिश कर रहा हूँ, कृपया गौर कीजिए
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मैं जानता हूँ कि, लब पे वो आ जाएँ
तो बेहद तकलीफ दे देती हैं
एक-एक लफ्ज़ और एक-एक आह
उनमें फंस कर तड़पते रहते हैं....

पता है मुझे कि, पाँव में वो आ जाएँ
तो हरेक क़दम रोक देती हैं
एक-एक होसला और एक-एक चाह
उनमें बिंथ कर घिसटते रहते हैं...

इल्म है मुझे कि, आवाज़ में वो आ जाएँ
तो सदाओं की मौत बन जाती हैं
एक-एक नाम, एक-एक याद
उनमें मिल कर बिलखते रहते हैं...

फिर भी जां
मैं सजा लूँगा उन्हें
अपने लब, पांव और आवाज़ पे

यहीं घर बसाएँ वो
हमारे रिश्ते में न आएं वो

क्योंकि मेरी जां
ये दरारें अज़ाब होती हैं

8 टिप्‍पणियां:

  1. वाह! बेहतरीन रचना, हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

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  2. bahut khoob......bahut umda rachna....meri blog tak pahuchne aur comment dene kay liye bahut bahut shukriya...........

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  3. बेनामी8/12/2010 1:07 pm

    सच कहा ... दरारें अज़ाब ही तो होती हैं जो ये जगह पा जाएँ तो रिश्ते दम तोड़ने लगते हैं

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  4. सुंदर भावपूर्ण रचना के लिए बहुत बहुत आभार.

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  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  6. ग़ज़ल और क़ताअत के भाव बहुत ही खूबसूरत है...जो आपके चिंतन और मंथन का प्रमाण है...
    बधाई स्वीकार करें

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