मंगलवार, अगस्त 03, 2010

क्या कोई करे?

एक अरसे के बाद कुछ लिखा है





थम के लब पे रह गयी फिर कोई सदा
अल्लाह! इस बेबसी का क्या कोई करे?

तू हो के पास भी रखे सदियों के फासले
जानम! मेरी आरजू रहे कायम या मरे ?

हिचकियाँ न कर दे बदनाम कहीं तुझको
बेबसी! ये दिल क्यूं तेरी याद से है डरे?

उन की सुकूं की नींद पे जगराते मेरे निसार
सबा! फिर तेरा रुख क्यूं मेरी चाह से है परे ?

वो थे मेरे, मेरे हैं, मेरे ही उन को बनना है
हालात! फिर तू क्यूं मजाक ऐसा है करे ?

चाहने वालों सा झूठा नहीं नाम मेरा लेकिन
तकदीर! क्यूं मेरे लिए ऐसा ज़हर भरे है ?

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