मंगलवार, अप्रैल 02, 2013

देव आनंद और विजय आनंद से क्षमा याचना सहित



मशहूर निर्माता तथा अदाकार देव आनंद और उनके भाई  विजय आनंद आज जीवित  होते तो अपनी कालजयी फिल्म "गाइड" का रीमेक ज़रूर बनाते। ऐसा करना भी चाहिए था, आखिर पुरानी सफल फिल्मों की ऐसी-तैसी करने के महत्वपूर्ण दायित्व का निर्वहन बेचारे साजिद खान, फरहान अख्तर, रोहित शेट्टी ही कब तक करते रहेंगे। बहरहाल, देव साहेब और विजय उर्फ़ गोल्डी "गाइड रिटर्न्स" को पुरानी फिल्म से कुछ हट कर तैयार करते। फिल्म की शुरुआत में उनका हीरो जेल से नहीं बल्कि किसी नोट छापने और पाखंड से शोहरत पाने वाली फैक्ट्री से बाहर आता। इसकी वजह यह बताई जाती कि  फैक्ट्री से दो बच्चों की लाश की बदबू आ रही है, इसलिए अब वहाँ रहने का वो मज़ा नहीं रहा है। पुरानी फिल्म की ही तरह वो भी किसी गाँव में तो जाता लेकिन वहाँ मंदिर में नहीं रहता। वो तो सरपंच के घर को फैक्ट्री घोषित करता और ठाठ से वहीं रहने लगता। वो कमर दर्द ठीक करने वाला अवतार पुरुष माना जाता, कहा जाता कि  वो जिसे भी लात मारता है, उसका कमर दर्द ठीक हो जाता है। लिहाजा लोग उसके पास आते, श्रद्धा के साथ लात खाते और चुपचाप चले जाते। भले ही उन्हें कमर की दिक्कत हो या न हो। फिर उस इलाके में अकाल पड़ता (अकाल पड़ना स्वाभाविक है, क्योंकि कहा गया है ना कि  "जहाँ-जहाँ  पाँव .............बंटाधार") लोग मरने लगते, भूख और प्यास से हा-हा कार मच जाती। तब फिल्म का नायक लात मारने के अपने मूल कर्म को त्याग कर ट्रैक चेंज करता। पुरानी फिल्म का नायक तो मूर्ख था जो उपवास करने लग गया। आज की फिल्म का नायक गाँव में बनी  पानी की सूख चुकी टंकी पर चढ़ जाता। "गाँव वालों" की तर्ज़ पर लहराता। "अरे ओ साम्बा" की शैली में पूछता "होली कब है? कब है होली........?" गाँव की बसन्ती आश्चर्य करती, कहती "ये तो वोही मिसाल हुई कि प्यासा नहायेगा क्या, होली खेलेगा क्या?" मौसी जी कहतीं "हे राम! बापू के इस देश में अकाल पड़ा है और आप होली खेलने की आशा जगा रहे हो!"  तब हमारा नायक कहता " वो जो स्वर्ग में राज कर रहे हैं, बारिश का डिपार्टमेंट उन्हीं के पास तो है। अरे! उनका असली शिष्य तो मैं ही हूँ और अनुगामी भी। उन्होंने ऊपर स्वर्ग बनाया और मैंने नीचे स्वर्ग और उसकी कई ब्रान्चेस बनाईं। वो ऊपर वैभव से रहते हैं और बाकी देवताओं पर राज करते हैं, तो मैं भी नीचे मज़े करता हूँ और देवताओं पर राज करता हूँ। तभी तो लोग देवता को छोड़ मेरी पूजा करने लगे हैं।  अब जब हम इतने एक समान  हैं तो मेरे कहने से वो क्या बारिश नहीं करवाएंगे? घबराओ मत बारिश होगी, तब तक बचा-खुचा पानी भी ख़त्म कर दो, भूख-प्यास से बदहाल हो कर तब तक रोते रहो जब तक कि  तुम्हारे आंसू भी न सूख जाएँ। जब ऐसा हो जाए तो बता देना, मैं बारिश करवा दूंगा।"
यह कहते ही पूरा इलाका नायक की जय-जयकार से गूँज उठता। ऐसी श्रद्धा और विश्वास उपजता कि  ठाकुर भी अपने हाथ जोड़ कर नायक की आराधना में जुट जाता।  श्रद्धा में भावविभोर होकर वीरू का दोस्त जय माउथ ऑर्गन पर नायक की प्रशंसा में धुन बजाते हुए अपना लकी सिक्का उसके चरणों में अर्पित कर देता। धन्नो खुद बखुद नायक की सवारी बनने  के लिए चली आती। रामलाल तो  ठाकुर की तिजोरी की चाबी नायक को अर्पित कर देता। ठाकुर की बहू राधा लालटेन जलाना छोड़कर नायक की आरती का दिया प्रज्ज्वलित करने में मशगूल हो जाती। रहीम चाचा अचम्भे के मारे नायक को आँखे फाड़-फाड़ कर देखते रह जाते। लकड़ी की टाल  पर बैठा सूरमा भोपाली, जेल में चुगली लगाता हरिराम और चुगली सुनता अंग्रेजों के ज़माने का जेलर टीवी पर इसका लाइव टेलीकास्ट देखते और श्रद्धा में डूब जाते। अड्डे पर बैठा कालिया "कितने आदमी थे?" का जवाब तलाशने की बजाय "मोरा गोरा रंग लई  ले........" गाते हुए भक्ति भाव से भर जाता और गब्बर, वो बेचारा तो "जब तक है जान, हे महामना मैं नाचूँगा.........."  पर ठुमके लगाता हुआ नायक की नृत्य के जरिये अराधना करने लगता। फिर बारिश हो या न हो, क्या फर्क पड़ता है, आँख का पानी तो बचा है ना, बस उस ही से काम चलाते चलो, क्योंकि ये आँख का पानी ही इकलौती ऐसी चीज है जो तुम्हारे पास बची है और नायक के पास नाम मात्र की भी नहीं। उसे तुम्हारी इसी अमानत से डर है, तभी तो उसने कहा कि  ये पानी भी सुखाओ, तभी बारिश करवाऊँगा।  तो बोलो जय.................की 
रत्नाकर त्रिपाठी 

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