मंगलवार, अप्रैल 02, 2013

कमाल करते हैं पाण्डेय जी




मंगल पाण्डेय जी नमस्कार, सुना है आज ही के दिन यानी 29 मार्च को आपने बगावत कर दी थी। आप नाराज़ थे कि आप लोगों को जो कारतूस दिए गए हैं उनमें सूअर या गाय की चर्बी लगी है। आपने अँगरेज़ अफसरों पर दनादन गोलियां दागी। फिर पकडे गए। भाई लोगों ने आप को फांसी पर चढ़ा दिया। माफ़ कीजियेगा लेकिन आप ने ये करने में कुछ जल्दबाजी कर दी। जल्दबाजी तो खैर आपने पैदा होने में भी कर दी। अरे! आज के दौर में जन्म लेना था आप को। गोली दागना कुण्डली में तो लिखा ही था, सो आप अब दाग देते। धांय -धांय करते और शान से पकडे जाते। फिर कड़ी सुरक्षा वाली किसी जेल में जाते। वहाँ जाते और वहाँ से अदालत लाये जाते समय आप किसी महानायक की तरह ट्रीट किये जाते। कैमरे आपके पीछे यूं भागते मानो साक्षात् किसी युग पुरुष को आते हुए दिखा रहे हों। भाई लोग पिल पड़ते ये बताने में कि मंगल जी ने किस कलर की ड्रेस पहनी थी और उनकी बॉडी लैंग्वेज क्या कह रही थी। फिर आपको जमानत मिलती। इस के बाद आपका सामना उस नस्ल से होता जो पामेला बोर्डेस से लेकर सिल्क स्मिता जैसी महान विभूतियों के कृतित्व और व्यक्तित्व को सेलुलोइड पर उतारने के भक्ति भाव में लीन रहती है। ये नस्ल छोटे मोटे लोगों की नहीं है। बहुत बिजी रहते हैं वो। इतने बिजी कि गाँधी पर फिल्म बनाने के लिए समय नहीं निकाल सके और एटेनबरो को यह तुच्छ काम करना पडा। खैर, मैं विषय से भटक रहा हूँ। आप पर भी फिल्म बनती। आप को हालात का शिकार बताया जाता, उन तमाम घटनाक्रमों से आपकी बगावत को सही करार दिया जाता जो घटनाक्रम खुद आप ने न कभी देखे और न ही कभी सुने या भोगे होंगे। बैंडिट किंग टाइप की ये फिल्म तहलका मचाती। फिर आप किसी युग प्रवर्तक की तरह देखे जाते। आप की फ़िल्मी छवि ही आप का सच करार दे दी जाती। फिर क्या था, बरसों बाद यदि आपको सज़ा सुनायी भी जाती तो आपकी फिल्मों के भावपूर्ण संवाद, आपकी निरीह सी फ़िल्मी छवि इन सब के दम पर आपको महान पुण्यात्मा करार देकर आपको बचाने की मुहीम शुरू हो जाती। लोग यूं विधवा प्रलाप करते मानो आप नहीं बल्कि दोषी वो मूर्ख लोग हैं जो आपकी गोलियों से मर गए। उन मूर्खों के लिए कहा जाता कि उन्होंने आपकी शांतिपूर्ण मकसद से चली गोली की राह में आ कर खुदकुशी कर ली, और गलत तरीके से आप को ही हत्यारा कहा जा रहा है। यकीन मानिए ये सब होता और बहुत मुमकिन है कि आप बच जाते। जी क्या कहा? आप बचना नहीं बल्कि देश के लिए मर जाना चाहते थे? मंगल जी, यदि आप आज के दौर में होते तो यूं बच जाने के विकल्प को ही चुनते क्योंकि आपके सामने ये स्पष्ट हो गया होता कि देश के लिए मरना या किसी को मारना नादानों की "हरकत" होती है। आजादी तो केवल "बिना खडग और ढाल" वाले ही दिला सकते हैं। आप और आप जैसों ने तो स्वतंत्रता संग्राम में टाइम पास ही किया। आप हों या भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, सुभाष चन्द्र बोस, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकुल्लाह खान, खुदीराम बोस, चापेकर बंधू आदि आदि..........................................................कौन आपको याद रखता है। इस देश में आप सब से ज्यादा श्रद्धा और सम्मान तो शायद बेन किंग्सले को मिल रहे हैं।
जी क्या कहा? फिल्म तो आप पर इस युग में भी बनी है?कमाल करते हैं पाण्डेय जी..............! सच तो यह है कि वो फिल्म आज तक "मंगल पाण्डेय" की फिल्म का दर्ज़ा नहीं पा सकी है, हम तो उसे आज भी "आमीर खान की फिल्म" के रूप में ही जानते हैं। खैर, तो मैं कह रहा था कि ................................................................................................................................................................................
रत्नाकर त्रिपाठी

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