बुधवार, अप्रैल 03, 2013

मैंने एक कल्पना की है, कृपया देखिये

मैंने एक कल्पना की है, कृपया देखिये 
हिन्दुस्तान के दिग्गज घराने के मुकेश और अनिल के बीच दूरियां ख़त्म हो जाने के बाद दोनों भाइयों की अपने-अपने घर पर बीती रात (ठेठ हिन्दुस्तानी शैली में) 
पहले अनिलऔर टीना के बीच हुई बातचीत 
अनिल " सो गयीं क्या? अभी तो आठ ही बजा है"
टीना आँख बंद कर थक कर सोने की एक्टिंग करते हुए "कुछ नहीं! बस यूं ही कुछ सिर दुख रहा था। मुझे भूख नहीं है, खाना टेबल पर रख दिया है, नहीं खाओ तो प्लीज फ्रिज में रख देना। मैं सो रही हूँ"
अनिल (टीना के माथे पर हाथ रखने का असफल प्रयास करते हुए) क्या हुआ? बुखार तो नहीं है? लग तो नहीं रहा ऐसा................"
अनिल के इतना कहते ही टीना तुनक कर पलंग पर उठ बैठीं। लगा मानो अचानक कोई रामबाण दवा मिल गयी हो और सिर दर्द एकदम गायब हो गया हो। बोलीं "हाँ तुम्हें क्यों ऐसा लगने लगा! तुम तो लगे रहो भरत मिलाप में, वाह! यहाँ बीवी भले ही सिर दर्द से मर जाए लेकिन साहब को फुर्सत ही कहाँ है। लगे हैं भाई और भाभी की सेवा में। 
अब अनिल कुछ - कुछ माजरा भांप गए। फिर भी नर्म स्वर में बोले " अरे! मैं तो ऐसे ही मिलने चला गया था, वो ही जिद करने लगे कि समझौता कर लो, लेकिन मैंने तो साफ़ कह दिया कि मेरी टीना से पूछे बगैर कोई बात नहीं करूंगा" 
टीना ने फिर से सिर दर्द वाले एक्सप्रेशन पैदा किया और मुंह मोड़ कर बैठ गयीं। अनिल थूक गटकते हुए कुछ डरते हुए बोले " लेकिन क्या करता भाभी मानी ही नहीं, अपने सर की कसम दे दी, तो मैं भी मजबूर हो गया।"
टीना के सिर दर्द का एक और शार्ट ब्रेक शुरू हो चुका था, अब उनके सिर की बजाय गले में भारीपन की झलक मिल रही थी। वो भरे गले से बोलीं "भाभी के सामने तो देवर जी लक्ष्मण बन जाते हैं, आवाज़ ही नहीं निकलती है वहाँ जनाब की। याद है जब मैं शादी होकर आयी थी। मैडम कितनी जल गयी थीं मुझसे, अगले दिन ही नौकर से कह कर पूरे घर में मेरे और राजेश खन्ना के पोस्टर चिपकवा दिए। देव आनंद और मेरे नाम से मायापुरी, माधुरी और स्क्रीन में छपे आर्टिकल्स की फोटो कॉपी चुपके से मेरी सास के कमरे में रखवा दीं। और तुम................तुम चुपचाप रहे। हाय रे मेरी फूटी तकदीर, ऐसा मर्द मिल गया तो ये तो होना ही था। 
अनिल के लिए ये स्क्रिप्ट नयी नहीं थी। उन्हें इसका एक-एक शब्द कंठस्थ हो चुका था, सो चुपचाप सुनते रहे। बीवी बोलती रही " और तुम्हारा भाई, कहता था बहु से घूंघट करवाओ, इसका पल्लू सिर पर क्यों नहीं रहता है? अरे मैं दिन भर सबके लिए रोटी सेंक-सेंक कर कमर दर्द से बेहाल हो जाती थी, फिर भी किसी के मुंह से झूठ भी नहीं निकलता था कि बेटा तूने खाना खाया या नहीं? बस मियाँ बीवी बैठे, रोटियाँ तोडीं और घुस जाते थे बेडरूम में, आज वोही फिर से सगे हो गए...............
अनिल जानते थे कि स्क्रिप्ट के कुछ संवाद अभी शेष हैं, वे चुपचाप सुनते रहे। बीवी जी का टेप चालू था "और तुम्हारी माँ! बड़ा बेटा ही उनके लिए सब कुछ है और घर की बहू तो बस बड़े वाले की बीवी ही है। जब देखो तब मेरे मायके वालों को ताने देती रहती थीं। जैसे बड़ी वाली देवी जी के माँ-बाप तो साक्षात् देवता ही थे। वरना बताओ भला क्या कमी रखी थी पापा ने बारात की आवभगत करने की? दान-दहेज़ भी हैसियत से ज़्यादा ही दिया था उन्होंने, फिर भी वो बेचारे ही बुरे हैं। खैर, मैं भी किस से बोल रही हूँ। मेरे पल्ले तो श्रवण कुमार पड़ गया है, सीता का देवर लक्ष्मण पड़ गया है, मेरी ही मति मारी गयी थी जो तुम्हारे लिए हाँ कह बैठी वरना रिश्ते तो मेरे लिए भी एक से बढ़ कर एक आये थे। 
परम्परागत स्क्रिप्ट का ये आख़िरी संवाद था। अनिल कुछ देर चुपचाप बैठे रहे। फिर बोले, अच्छा चलो खाना तो खा लें, इस बारे में कल बात करते हैं। 
मगर बीवी जी यूं ही शांत होने वाली नहीं थी, उफन कर किसी मिमिक्री आर्टिस्ट की तरह बोलीं "क्यों, भाभी ने खाना नहीं खिलाया क्या, अपने हाथ से, पल्लू से हवा करते हुए................मेरा दिमाग मत खराब करो, कल से वहीं खाना और वहीं रहना................बड़े चले आये खाना खिलाने................!!!!!
दूसरा दृश्य 
मुकेश और नीता के बीच का संवाद कुछ ऐसा चला 
नीता बोलीं "कर आये भाई को विदा? आज तो मन में बल्लियाँ उछल रही होंगी। बिछड़ा भाई जो मिल गया................ ! अपनी प्यारी बहु को नहीं बुलाया तुमने................! उस बेचारी के बगैर कैसे मन लगा होगा तुम्हारा?"
मुकेश -" ये क्या बक रही हो? ये बिज़नस है, तुम नहीं समझोगी। और उसकी बीवी कहाँ से आ गयी बीच में? वो बेचारी तो यहाँ आयी भी नहीं थी................
अब तो नीता व्यंग्य से रौद्र की मुद्रा में आ गयीं। हाथ नचाती हुए बोलीं " अब वो बेचारी हो गयी और मैं क्या हूँ................बोलो-बोलो................बोलते क्यों नहीं कि मैं तो तुम्हारी लाचारी हो गयी हूँ। बेचारी माय फुट, कितनी बेचारी है वो, मेरा और भज्जी का फोटो पूरे घर में चिपकवा दिया था, मां के कमरे में उसकी कॉपी चुपचाप रखवा दी थी................और आज वो बेचारी हो गयी। वाह! क्या भोले भंडारी से पाला पडा है मेरा। 
अब बारी यहाँ की परंपरागत स्क्रिप्ट की थी और हमेशा की तरह उसके इकलौते श्रोता मुकेश ही थे। बीवी बोलती चली गयी " और तुम्हारी माँ , उन्हें तो बस छोटी बहु से ही लाड है, मैं और मेरे घर वाले तो फूटी आँख नहीं सुहाते हैं उन्हें, और तुम भी उनकी ही तरफ हो गए हो। चले हो समझौता करने। हाय रे मेरी फूटी किस्मत! मैं मर क्यों नहीं जाती!
स्क्रिप्ट में कुछ नयापन भांप कर मुकेश बीवी को बीच में टोकने का कर्म निभाने की मुद्रा में बोले "अरे! काहे का समझौता, वो तो मिलने आया था, माँ बोलीं तो मैं मिल लिया। पट्ठा मेरे पाँव पर गिर पड़ा, बोला भैया, समझौता कर लो। लेकिन मैंने भी साफ़ कह दिया कि नीता से पूछे बगैर कोई बात नहीं होगी। तुम तब सास-बहु का सीरियल देख रही थीं, इस लिए मैं बात नहीं कर सका, इस बीच उसने मुझे तुम्हारी कसम दे दी तो मैं क्या करता, समझौता कर ही लिया।"
"मैं क्या करता................" अब मिमिक्री की बारी नीता की थी................"क्यों मान ली उसकी बात, देने देते कसम और समझौता नहीं करते, ज्यादा से ज्यादा क्या होता मैं मर जाती, तो इस से तुम्हें क्या फरक पड़ता? यही तो चाहते हो न तुम भी? मरने देते मुझे, फिर आराम से रहते भाई और माँ के साथ और पेट भर-भर कर खाते छोटी वाली के हाथ का खाना। जैसे मुझे कुछ मालूम ही नहीं है, मैडम ने शादी के बाद दो बार खाना क्या खिला दिया था, जेठ जी तो फ़िदा हो गए थे बहु पर, तारीफ करते नहीं थकते थे उसकी। तो अब जाओ................वहीं जाओ ना। यहाँ क्यों चले आये मेरे पास? 
नीता ने फिर स्क्रिप्ट की परंपरा का निर्वहन शुरू किया, रूंधे गले से बोलीं " और तुम्हारा भाई, बीवी नहीं आयी थी तब तक भाभी-भाभी कह कर मेरे पीची पड़ा रहता था, भाभी ये खिला दो, भाभी वो खिला दो, लगा रहता था। उसके चक्कर में सारा-सारा दिन रसोई में खटती रहती थी और बीवी आते ही कैसा रंग बदल दिया उसने। अरे! एक दिन मैं प्लेन से उतर कर बैलगाड़ी में पोज़ क्या दे बैठी, दुष्ट ने अखबारों में "घोडा-हाथी" कह कर मेरे फोटो छपवा दिये। जैसे मैं समझती ही नहीं हूँ कि वो हाथी और घोडा किसे कह रहा था। खुद की बीवी की शक्ल देखी है उसने, बड़ा आया समझौता करने वाला................
उपसंहार 
स्क्रिप्ट यहाँ भी ख़त्म होने ही वाली थी। दोनों घरों के एक-एक कमरे में तस्वीर में कैद हो चुके पिताश्री की तस्वीर तेज़ी से हिलने लगी। यदि तस्वीर बोल पाती तो मेरा दावा है उसने संशोधित नारा देने के अंदाज़ में कहा होता "दुनिया बाद में, पहले अपनी बीवियों को तो कर लो मुट्ठी में................"

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