गुरुवार, जुलाई 22, 2010

आरजू है कि

जानम, तेरा एहेसास मेरी तमाम है दौलत
बस दर्द दे दे अपने, मुझे अमीर होना है

हर शब् तू सो पाए , हो दुनिया से बेखबर
तेरी सुकूं की नींद तो मेरा बिछोना है

फ़क़त सोचता हूँ ये, करूँ कैसे हदें पार
सेहरा में भी कैसे मुझे बीज बोना है


तेरे तसव्वुर के नाम है हरेक शब्, लेकिन
मै जानूं तुझे कहीं, मुझे कहीं और होना है


तेरा एक-एक अश्क न मैं खुल के पी सका
साथ इसी हकीकत, तमाम उम्र का रोना है

2 टिप्‍पणियां:

  1. rtnaakr ji aadaab aapki post pdhi usmen smrpn pyaar pyaar ke prti tyaag kaa anuthaa andaz he iske liyen bhut bhut bdhaayi, aek baat or aapne mujhe yaad kiyaa sujhaav diyaa or sch kaa drpn btaayaa iske liyen shukriyaa. akhtar khan akela kota rajsthaan

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