सोमवार, जुलाई 05, 2010

तन्हाई में रोया है

नन्ही सी बूँदें खिलखिलाना भूल गईं हैं
ज़रूर आज मेरा कोई तन्हाई में रोया है

अल्लाह, क्या इसी का है नाम मजबूरी
जो उसे सहारा देने का हक हमने खोया है

आरजू है अपना बना लूं उसका हरेक दर्द
ये मुराद रख के हर रात दिल ये सोया है

मेरी जां तू जान है मेरी, हरेक धड़कन की
दिल की ज़मीं पे ये खयाल आरजू ने बोया है

तेरे इंतज़ार में यूं जी रहे हैं मौत सी ज़िंदगी
जूं हरेक ज़ख्म मेरे ही खूं ने ही धोया है


बस एक बार आ, ओ एक-दूजे के हो जाएँ हम
तसव्वुर इस गरीब ने बस तेरे लिए संजोया है

5 टिप्‍पणियां:

  1. नन्ही सी बूँदें खिलखिलाना भूल गईं हैं
    ज़रूर आज मेरा कोई तन्हाई में रोया है

    सुन्दर रचना प्रस्तुति..आभार

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  2. खुबसूरत शेर दिल की गहराई से लिखा गया बधाई

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  3. बेनामी7/06/2010 11:43 pm

    दिल की ज़मीं पे ये खयाल आरजू ने बोया है...

    बहुत ही ख़ूबसूरत ख़याल ! और शब्दों का इतना सुन्दर प्रयोग... बस लाजवाब

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  4. kuchh warso ki jma thosh udashi ko aapke is khubsurat kyal ne taral bna diya...........

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