सोमवार, जुलाई 19, 2010

चाहत में लिखा है रत्नाकर ने

मौजे- समंदर और मैं हमसफ़र तो हैं
दोनों ही की तो दौलत नमकीन पानी है

तू जब भी मिलेगी , हम इस्तेकबाल करेंगे
ये उम्र का आना और जाना तो फानी है

खारिज यूं न कर, तू कैस ओ फरहाद को
मुझे ही तो ज़माने को ये दास्तां सुनानी है

तेरे साथ जो जोड़ ली है आरजू एक मेरी
यकीन मान वो मेरी चाह, फ़क़त रूमानी है


एक-एक तेरा तसव्वुर, हरेक मय का कतरा
जा नहीं सकती है ये ये आदत पुरानी है

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अर्थ
मौजे-समंदर---------समुद्र की लहर

दौलत नमकीन पानी- समुद्र का पानी और आंसू, दोनों नमकीन हो कर हमारे दर्द को बाँट लेंगे

इस्तेक़बाल- स्वागत

कैज ओ फरहाद- मजनू और फरहाद


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