रविवार, जुलाई 18, 2010

सूखी आँखें

अपनी एक रचना सादर पेश कर रहा हूँ
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सूखी ये आँखें चुपके से होने लगी हैं नम
यकीनन तेरे मुकाम पे सावन की धूम है

दर्दे-दिल देने लगा है मलहम सा मज़ा
शायद मेरा रकीब अब पुरसुकून है

सींचता हूँ ज़ख्म आंसुओं से आजकल
फिलवक्त इसी सूरत मिलता सुकून है

तेरी हरेक खुशी पर है ज़िंदगी निसार
तेरे लिए ही पाया इन रगों ने खून है

या तो दिखे तू या छिन जाएँ मेरी आँखें
चाहत का मेरी फ़क़त इतना जुनून है

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अर्थ
रकीब- दुश्मन
फिलवक्त- अभी हाल में
फ़क़त- महज़

1 टिप्पणी:

  1. या तो दिखे तू या छिन जाएँ मेरी आँखें
    चाहत का मेरी फ़क़त इतना जुनून है '
    -वाह!इन्तहा चाहत की यह भी बहुत खूब है.
    बहुत खूब गज़ल कही है आप ने.

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