मंगलवार, जून 01, 2010

आ जा कि.....

अभी अभी जो दिमाग में आया वोह लिख रहा हूँ (दिल से ) मैं ही लिख रहा हूँ, येह मेरी ही लिखी लाइन हैं


आजा कि तेरी चाह में सदियों का रतजगा है
येह फ़रिश्ता नहीं एक इंसान जगा है

तू तो दिखा के ख्वाब यूं दूर पहुँच गयी
उम्मीद का वोह चिराग अब भी जवां है

कहना था आसां कि तुम जी के देख लो
आ के देख लो येह ज़िन्दगी ही सजा है

मत रखो मलहम इस दिल के ज़ख्म पर
इस दर्द का भी तुझ माशूक सा मज़ा है

सौ बार मार देंगे हम अपना दिले-नाकाम
फिर आ जाये वोह जिसका नाम क़ज़ा है

आरजू का क्या, इक रेत का महल है येह
बस येह कि हरेक ज़र्रे पे तेरा नाम लिखा है

तू बनी बेवफा सही, खुश रहे हो जहाँ भी तू
तेरी खुशी को, मेरा हर सजदा अता है

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अर्थ
रतजगा- रात भर जागना
माशूक- प्रेमिका
दिले-नाकाम- असफल मन
क़ज़ा- मौत
ज़र्रा- कण
सजदा- श्रद्धा से सिर झुकाना
अता- समर्पित

9 टिप्‍पणियां:

  1. मत रखो मलहम इस दिल के ज़ख्म पर
    इस दर्द का भी तुझ माशूक सा मज़ा है


    -वाह!! सभी शेर एक से बढ़कर एक!!

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  2. एक एक शेर जैसे एक एक अनमोल मोती ..

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  3. मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !

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  4. bahut badhiya likha hai aapne..
    pasand aayi aapki rachna..
    dhnywaad..

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