गुरुवार, जून 17, 2010

तुम्हारे लिए

मेरी एक नई रचना सादर पेश है
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एक मुद्दत से तुम्हारी आंख को तरसे हैं ये
ख़त के इन शब्दों को तुम प्यार देना

तुम्हारे लिए सही है कलम की कैद इन ने
बस इन पे तुम थोड़ी मुस्कान वार देना

ज़माने की बुरी नज़र से इनको बचाना है
आँख का काजल तुम इनको उधार देना

आँख से पहले जो चूम लें तुम्हारे आरिज़
हल्की सी इन को एक चपत मार देना

सिर्फ तुम्हारी खातिर मिला हैं इन्हें वजूद
यह हिदायत इन को तुम बार-बार देना


कहीं दूर गहरी नींद में मुस्कुरा उठूँगा मैं
बस पास सुला के इन्हें तुम दुलार देना

5 टिप्‍पणियां:

  1. कहीं दूर गहरी नींद में मुस्कुरा उठूँगा मैं
    बस पास सुला के इन्हें तुम दुलार देना

    बहुत बढ़िया भावपूर्ण रचना....

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  2. एक मुद्दत से तुम्हारी आंख को तरसे हैं ये
    ख़त के इन शब्दों को तुम प्यार देना.
    कहीं दूर गहरी नींद में मुस्कुरा उठूँगा मैं
    बस पास सुला के इन्हें तुम दुलार देना.

    bhai wah!... kabil-e-tareef

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