गुरुवार, जून 10, 2010

याद का नूर

अभी-अभी मैंने कुछ लिखा है, कृपया गौर करने की तकलीफ करें


तनहा रात में चमक उठते हैं ज़ख्म तमाम
तेरी याद का नूर ऐसा कमाल करता है

उम्र भर रोते रहें लिपट के खुद के साये से
तन्हाई में दिल कुछ ऐसा ख़याल करता है

हमारे दरमियाँ ये "था" कहाँ से आया है
जिसे भी देखिये, ये ही सवाल करता है

समंदर की लहरों में भी वो असर कहाँ
दर्द से उठा अश्क जो बवाल करता है

तिल-तिल कर हम ख़तम हो रहे हैं यूं
गाँव का हाल जैसे अकाल करता है

दम के निकलने तक कोई तो आ जाएगा
ये ख़याल उम्मीद को बहाल करता है

8 टिप्‍पणियां:

  1. आईये जानें .... क्या हम मन के गुलाम हैं!

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  2. बुढापे मे आँखें इतना साथ नही देती रंग संयोजन के कारण पढ नही पाई आभार्

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  3. तिल-तिल कर हम ख़तम हो रहे हैं यूं
    गाँव का हाल जैसे अकाल करता है

    kya baat hai..sunder upmaa di hai satik

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  4. हमारे दरमियाँ ये "था" कहाँ से आया है
    जिसे भी देखिये, ये ही सवाल करता है

    poori rachna hi khoobsurat hai...
    har ashaar mukamil hai..
    bahut accha likhte hain aap..
    shukriya..

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  5. हमारे दरमियाँ ये "था" कहाँ से आया है
    जिसे भी देखिये ये ही सवाल करता है
    waah jabardast ...bahut hi sundar.
    blog par ijjatafzaai ka shukriya

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  6. अरे इस पोस्ट पर मैंने कमेन्ट किया था वो कहाँ चला गया ? :(

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