बुधवार, जून 16, 2010

ऐतबार अभी बाकी है

कृपया मेरी एक और रचना पर गौर करें

जन्नत मिलने का इंतज़ार अभी बाकी है
तेरे वादे पे ऐतबार अभी बाकी है

उम्र भर नींद ली पलकों को बिन गिराए
तेरे दीदार का करार अभी बाकी है

हलक में फंसी हिचकी भी हो जाए आज़ाद
ज़िन्दगी का येही कार अभी बाकी है

तू भी बन अपना, खंजर से कर दे वार
तकदीर की कुछ मार अभी बाकी है

दूरी में खो गए हमारे तमाम निशाँ मगर
खुश हूँ, यादों का तार अभी बाकी है

सदियों से मिट रहा नदियों का शीरीं आब
समंदर में क्यों खार अभी बाकी है


मिट गया है मेरी हरेक आरजू का वजूद
फिर भी दिले-बेक़रार अभी बाकी है


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अर्थ
करार- अनुबंध, एग्रीमेंट
हलक- गला
कार- काम

शीरी आब- मीठा पानी
खार- खारापन
वजूद- अस्तित्व

2 टिप्‍पणियां:

  1. सदियों से मिट रहा नदियों का शीरीं आब
    समंदर में क्यों खार अभी बाकी है

    बढ़िया प्रश्न है
    सुन्दर भाव है

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  2. दूरी में खो गए हमारे तमाम निशाँ मगर
    खुश हूँ, यादों का तार अभी बाकी है

    सदियों से मिट रहा नदियों का शीरीं आब
    समंदर में क्यों खार अभी बाकी है
    बहुत खूब कहा

    जवाब देंहटाएं