गुरुवार, जून 24, 2010

वो बरसात

अपनी एक और रचना पेश कर रहा हूँ
-------------------------------------------------------------------------------------

बूंदों की शक्ल में वस्ल का पैगाम आया था
वरना क्या वक़्त ने यूं ही हमे मिलाया था

सच कहूं वो ख्वाब की ताबीर वाले लम्हे थे
ख्वाब जो मुझे हर बरसात ने दिखाया था

कांपते लब-ओ-दस्त पे भी रहम करते हुए
फलक ने आबे-जमजम उन्हें पिलाया था

ख्वाहिश हुई समेट लूं तुझ को खुद में मैं
अपने रूप में तूने कैसा नशा मिलाया था

सिलसिला सा रहें ये बरसात-ओ-ये वस्ल
वक्ते-जुदाई फ़क़त ये ही ख़याल आया था

___________________________________________

अर्थ
वस्ल- मिलन
ख्वाब की ताबीर- सपने का सच होना
लब-ओ-दस्त- ओंठ और हाथ
फलक- आसमान
आबे-जमजम - पवित्र जल
वक्ते-जुदाई- अलग होते समय
फ़क़त- केवल

3 टिप्‍पणियां:

  1. सिलसिला सा रहें ये बरसात-ओ-ये वस्ल
    वक्ते-जुदाई फ़क़त ये ही ख़याल आया था

    -वाह! बहुत ही उम्दा!!

    जवाब देंहटाएं
  2. wah sir... behtareen ghazal kahi hai...


    mere blog par aapke precious comments ke liye bahut shukriya...

    जवाब देंहटाएं